Wednesday 30 December 2015

नव वर्ष की शुभकामनायें

बंधुवर लीजिये नव वर्ष की-
शुभकामनायें।
भूलकर विगत दुश्वारियाँ,
आगे बढ़ते जायें।

आप चढ़ते जायें उन्नति के सोपान,
पायें समाज में उच्च सम्मान।
बढ़ती जाये शान आपकी,
गले में पढ़ती रहें पुष्पमालायें.................. बंधुवर........... ।

आप रहें सर्वदा सुखी मनायें रोज दिवाली,
भरे रहें भण्डार कभी न हों खाली।
सरसें जीवन में रंग,
आप सतरंगी हो जायें............................ बंधुवर........... ।

आपके स्वर्णिम हों दिन और रुपहली रातें,
होयें विरोधी पस्त न कर सकें वे घातें।
आपके प्रति उनकी-
मिट जायें दुर्भावनायें.................. बंधुवर........... ।

हर खुशी आपको उपलब्ध होती रहे,
खुशियों की बरसात होती रहे।
नहीं होवे आपको कोई अभाव,
प्रगति की बनी रहे सम्भावनायें.................. बंधुवर........... ।

जयन्ती प्रसाद शर्मा 



   

Wednesday 23 December 2015

जो हम तुमसे मिल पाते

जो हम तुमसे मिल पाते,
तेरी राम कहानी सुनते-
कुछ हम अपनी व्यथा सुनाते...........जो हम.............।
मत पूछो कैसे बीते दिन,
नहीँ चैन था मन में पल छिन
आशाओं के दीप जलाकर,
रैन बिताती मैं तारे गिन
मधुर मिलन के बीते पल,
यादों में आकर मुझे जलाते...........जो हम.............।
मैं तेरी तुम मेरे हो,
जीवनाधार तुम मेरे हो
चित्रित कर दी छवि अपनी मेरे मन-
तुम बहुत ही कुशल चितेरे हो
मेरे ह्रदय पटल पर चित्र तुम्हारा,
मिटता नहीं मिटाते...........जो हम.............।
अब विरह सहा नहीं जाता है,
मन धीरज नहीं पाता है
कैसे तुन बिन जियूं जिन्दगी-
मुझे समझ नहीं आता है
चैन मुझे मिल जाता प्रियतम-
पड़े फफोले विरहानल से-
जो तुम सहला जाते...........जो हम.............।

जयन्ती प्रसाद शर्मा           
            

Tuesday 8 December 2015

समय मुसाफिर

समय मुसाफिर अपनी गति से चलता जाता है,
नहीं ठहरता पलभर निरन्तर बढता जाता है।
      जो नहीं चल पाता साथ समय के,
      पीछे रह जाता है।
      हो जाता है कालातीत,
      अपयश जग में पाता है।
गया वक्त नहीं आता लौटकर,
समय निकल जाने पर पछताता है.............समय मुसाफिर........।
      समय नहीं करता किसी का इन्तजार,
      कम नहीं करता अपनी रफ्तार।
      नहीं किसी से करता नफरत,
      नहीं किसी से अतिशय प्यार।
नहीं किसी को गले लगाता,
नहीं किसी को ठुकराता है.............समय मुसाफिर..........।
       वक्त की है हर शै गुलाम,
       अच्छे वक्त में ही इन्सान पाता है मुकाम।
       बुरे समय में गिर जाते हैं सब,
       नहीं कोई चतुराई आती है काम।
जो जानता है नब्ज वक्त की,
वही खड़ा रह पाता है.............समय मुसाफिर........... ।
       चाल समय की तुम जानो,
       नहीं उसे अपना मानो।
       दूर दृष्टि अपनाओ तुम,
       अनुकूलता समय की पहचानो।
समय की चाल समझने वाला ही,
लाभ समय का ले पाता है.............समय मुसाफिर........... ।

जयन्ती प्रसाद शर्मा 

Tuesday 24 November 2015

अंग्रेजी में निमंत्रण पत्र

अंग्रेजी में निमंत्रण पत्र प्राप्त कर-
दिल हो गया बाग बाग।
अपने को आभिजात्य वर्ग से जुड़ने पर-
हो रही थी अपार प्रसन्नता।
सच ‘सोनी वेड्स मोनी’ शब्दों का आकर्षण-
कहाँ है परिणय या पाणिग्रहण जैसे हिंदी के पारम्परिक शब्दों में।
नीचे लिखे फुट नोट ने "कृपया समारोह में अवश्य आइये"-
और पढने के लिये नवीनतम सेहरा साथ लाइये-
ने कर दिया मन अति प्रफुल्लित।
मैं हो रहा था खुश मुझे मिलेगा अवसर-
प्रतिष्ठित वर्ग के लोगों में प्रदर्शित करने का अपना काव्य कौशल।
मैंने उठा ली अपनी कलम और लिख डाला एक सुन्दर सेहरा।
मैंने ऐसे अहम अवसरों के लिये सँभाल कर रखे वस्त्रों को पहन कर-
डाल लिया कंधे पर शाल।
उँगलियों से उलझा लिये अपने बाल और पहुँच गया-
समारोह स्थल पर।
वहाँ स्त्री पुरुषों के साथ देखकर कुत्तों की भीड़-
ठनक गया मेरा माथा।
एक सज्जन से, मुझे ज्ञात हुआ-
यह समारोह आयोजित किया गया है श्रीमान वर्मा जी के पालतू-
कुत्ते कुतिया के विवाहोपलक्ष में।
हिंदी के कोई लब्ध प्रतिष्ठित कवि करने वाले हैं वाचन सेहरे का।
सुनकर ठोक लिया मैंने अपना सिर।
हे प्रभु मुझे अब इन नाशुकरों को दिखाना होगा-
अपना काव्य कौशल, पढना होगा सेहरा इन कुत्तों के लिये।
मैं चुपचाप निकल आया समारोह स्थल से,
फाड़ कर फेंक दिया सेहरा-
और वापस आकर पड़ गया चारपाई पर अन्यमनस्क होकर।

जयन्ती प्रसाद शर्मा                   

Monday 9 November 2015

सामयिकी

राजनीति के अपने हैं तौर,
अपने ही ढंग है। 
कल तक थे वे उनके साथ,
आज इनके संग हैं। 
जो मर्मान्तक शब्दों के चला रहे थे तीर,
जो कर देते थे मन को अधीर। 
देख पलट कर तो वो निकले,
जो कल तक थे इनके बगलगीर। 
नहीं नेताओं को अपना मानो,
गिरगिट की सी गति इनकी जानो। 
नहीं इनकी बातों में आओ,
इनकी फितरत को पहचानो। 
जिनके बोल बचन कारक हैं संताप के,
जलते अंगारों के उन्ताप से। 
रहना संभल कर और सजग,
अब वे हो गये हैं आपके। 
आम बन गये हैं खास,
खास हो गये हैं उदास। 
मिलते मिलते मंजिल रह गई,
व्यर्थ हुये सारे प्रयास। 

जयन्ती प्रसाद शर्मा              
    

Tuesday 27 October 2015

यह तुमने क्या मुझसे कह डाला !

यह तुमने क्या मुझसे कह डाला!
परीक्षा प्रवेश से पहले ही मुझको परिणाम बता डाला…
यह तुमने क्या ...।
मैं जा रहा था अपनी राह,
नहीं मन में थी कोई चाह,
पड़ी नजर अचानक तुम पर,
मन कर उठा आह, वाह।
करता मैं तारीफ़ हुस्न की, पेस्तर ही–
हाथ झटक कर, पैर पटक कर तुमने अंजाम बता डाला ....
यह तुमने क्या ...।
मैंने धीरज रख लीना,
कोई जब्र नहीं कीना।
पुनः एक दिन दिखलाई दीं तुम,
हौले से मुस्काई थीं तुम।
तुम्हारे धीरे से मुस्काने ने मुझको प्यार का इल्हाम करा डाला ...
यह तुमने क्या....।
नहीं इजहारे इश्क किया तुमने,
नहीं खुलकर प्यार किया हमने।
नहीं तुमने दिल मुझको दिया,
नहीं मेरा दिल तुमने लिया।
कुछ लेने देने से पहले ही मुझपर बे-ईमानी का इल्जाम लगा डाला.....
यह तुमने क्या .....।
तुम दूर से दर्शन देती हो,
नहीं बतरस का सुख देती हो।
करता मैं मनुहार तुम्हारी, पर तुम-
मेरी तड़पन से सुख लेती हो।
मैं रहा मानता आदेश तुम्हारा फिर भी, नाफ़रमानी का फरमान सुना डाला...
यह तुमने क्या....।

जयन्ती प्रसाद शर्मा 




                                                            चित्र गूगल से साभार




Thursday 15 October 2015

मेरे चंचल मन की उड़ान

मेरे चंचल मन की उड़ान,
कर देती हैं मुझको हलकान...मेरे चंचल.....।
मन कहता है उनके दर पर जाऊँगा,
पैगामे मोहब्बत उन्हें सुनाऊंगा।
जो कर देती हैं वे इजहारे इश्क,
अपने दीवानेपन की हालत मैं भी उन्हें बताऊंगा।
कबूलनामा उनका कर देगा मंजिल को आसान .....
मेरे चंचल ....।
प्रिय अनिंधनीय सौन्दर्य तुम्हारा है,
अभिनन्दनीय रंग-रूप तुम्हारा है।
तुम्हारे बेमिसाल हुस्नो जमाल ने-
हमको मारा है।
मत ठुकरा देना प्यार भरा दिल मेरा बन कर तुम नादान ......
मेरे चंचल .....।
वह इत्तफाक मुझसे नहीं रखती हैं,
वह खुशामदीद मुझसे नहीं करती हैं।
कह दूंगा वह अपने सीने में–
संग-ए-दिल रखती हैं।
कर दूँगा बेजार, छीन कर ले आऊँगा उनके चेहरे की मुस्कान......
मेरे चंचल.....।


जयन्ती प्रसाद शर्मा 



चित्र गूगल से साभार

Wednesday 30 September 2015

परामर्श

पता नहीं वे मेरी कमियों का ढिंढोरा क्यों पीटना चाहते हैं। 
उस दिन उन्होंने दे दिया परामर्श–
दूर दृष्टि अपनाने का।
शायद उन्हें पता नहीं मैं दृष्टि बाधित हूँ,
और पास का भी मुश्किल से–
देख पाता हूँ 
उनका उच्च विचार का सुझाव भी समझ से परे है।
मैं एक औसत कद का व्यक्ति हूँ।
किसी उच्चता के लिए मुझे कितना प्रयास करना पड़ेगा, उचकना पड़ेगा-
विचारणीय है।
बड़े दिल वाला बनने के लिए उन्होंने बड़े मासूमियत से कह दिया।
मैं अपने अस्सी सेंटीमीटर सीने में बड़ा दिल कैसे समाहित कर पाउँगा–
यह सोच कर बैठने लगता है मेरा छोटा सा दिल।
भारी भरकम होने की सलाह भी बे मानी है।
सामान्य कद का मेरे जैसा व्यक्ति भारी भरकम होकर–
चलने फिरने से हो जायेगा मजबूर और लुढकने लगेगा गेंद जैसा। 
मैं सोचता हूँ मैं जैसा भी हूँ, वैसा ही ठीक हूँ। 

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Thursday 17 September 2015

मन मयूर मम नृत्य करत

मन मयूर मम नृत्य करत!
घूमत मगन मन चक्रत–चक्रत,
सँभल-सँभल पग–
धरणी पर धरत ........ मन मयूर मम .....।
         छनन-छनन छूम छनन-छनन छन,
         घंघरू सौ छन छनात मन।
         घनन घनन घूम घनन घनन घन,
         घंटा सौ घन घनात मन।
नीरवता को हरत .......मन मयूर मम ......।
         पंख पसार छटा बिखरावत,
         मन-हर वातावरण बनावत।
         सब जग नीकौ नीकौ लागे,
         मंद मंद मम मन मुसकावत।
जीवन लगत सरस ......मन मयूर मम .......।
         नृत्य करत मन ताता थैया,
         घूम घूम कर ले घुमकैया।
         छायौ आनन्द मन-उपवन में,
         हूम-हूम कर ले हुमकैया।
मन में मोद भरत ......मन मयूर मम ......।
         तिरकिट धिरकिट धूम, धूम,
         रह्यौ मस्ती में झूम, झूम।
         अति उछाह मन में भरयौ, 
         चाहता है उछल कर गगन चूम।
रह्यौ बहुत ही हरष ......मन मयूर मम ......।

जयन्ती प्रसाद शर्मा 

                 
                 चित्र गूगल से साभार

Wednesday 2 September 2015

जब ख़याल तुम्हारा दिल में आता है,

जब खयाल तुम्हारा दिल में आता है,
पता नहीं मुझको क्या हो जाता है।
दिल करता है आसमान में उड़ जाऊँ,
चाँद सितारे तोड़ जमीन पर ले आऊँ।
जतन से जड़ दूँ उनको तेरे आँचल में,
फूल चमन के सारे चुनकर–
बिखरा दूँ तेरे आँगन में।
तेरा चमकना, तेरा गमकना मुझको भाता है ..........जब ख़याल...........।
इन्द्रधनुष के रंग चुरा कर तेरे जीवन में भर दूँ,
तेरी श्यामल काया को मैं सतरंगी कर दूँ।
तेरे संपुट ओठों को अपने ह्रदय रक्त से रंग दूँ,
तेरे रक्तिम अधरों को मैं और लाल कर दूँ।
तेरे आगे मेरे मन में नहीं कोई टिक पाता है..........जब ख़याल..............।
तेरे उलझे बालों में उलझ गया मेरा जीवन,
तेरे नयन कटारों से घायल हुआ मेरा तनमन ।
कौन घड़ी में नयना तुमसे टकराये,
नहीं रात को नींद चैन दिन में आये।
उठती रहती है टीस जिगर में दिल मेरा घबराता है............जब ख़याल.....।
करूँ कौन जतन तुमको पाऊँ,
मैं कुछ सोच नही पाऊँ।
ओ कमल नयन ओ चंद्रमुखी,
तू कर नहीं मुझको और दुखी।
क्या नहीं समझती दुखियों की आह से सब जल जाता है..........जब ख़याल ....।

जयन्ती प्रसाद शर्मा 



चित्र गूगल से साभार

Saturday 15 August 2015

जन गण मन गाते जाओ

जन गण मन गाते जाओ,
दूध मलाई खाते जाओ।
तुम हो देश के माल देश का,
काहे व्यर्थ में शरमाओ।
          बन जाओ बच्चों के सरपरस्त, 
          बनालो बाल सुधार का ट्रस्ट।
          कर चन्दा मिल कर खाओ,
          नहीं कहेगा कोई भ्रष्ट।
तुम हो देश के कर्णधार,
तुम्हें देश का भार उठाना है।
खा पीकर ही माल देश का,
अपने कंधे पुष्ट बनाना है।
          खींचते रहो माल देश का,
          हो जाओ तुम मालामाल।
          देश तभी समृद्ध बनेगा,
          जब कर्णधार होंगे खुशहाल।
लोगों का क्या है कहने दो,
देते हैं उपालम्भ देने दो।
नारों से नहीं होना विचलित,
उन्हें नारों से भूख मिटा लेने दो।
           भूखा-भूख से बिल्लायेगा,
           प्यासा भी शोर मचायेगा।
           हो जायेगा वह स्वमेव चुप,
           जब चिल्ला चिल्ला कर थक जायेगा।

जयन्ती प्रसाद शर्मा.





                       

Sunday 26 July 2015

बहुत सो लिये

बहुत सो लिये और न अब,
जिम्मेदारी से मुँह मोड़ो।
करदो भ्रष्टों को आगाह,
और उनकी बाँह मरोड़ो।
      नोंच नोंच कर सम्पदा देश की,
      अपने भंडार भरे हैं।
      दिखला कर जनता को सब्जबाग,
      पूरे अपने स्वार्थ करे हैं।
कर दिये गहरे घाव मनों में,
अब और कचोटना छोड़ो....................... बहुत सो लिये......।
       देश पर हैं अनेक अपकार तुम्हारे,
       जाति धर्म का दुष्प्रचार कर मतभेद उभारे।
       आग लगा कर क्षेत्रवाद की,
       बहुतों के घर-वार उजाड़े।
अब नहीं कोई चाल चलेगी,
ओ गद्दारो, चोरो....................... बहुत सो लिये................ ।
        देश की सेवा करने को नेतृत्व थमाया था,
        लूट खसोट करने को नहीं मान्यनीय बनाया था।
        अब सब बापस करना होगा,
        भ्रष्टाचार से जो धन माल कमाया था।
भूखी रही देश की जनता,
तुमने भरे करोड़ो....................... बहुत सो लिये................ ।
         लाकर युवकों को राजनीति में, अपने रंग जमाये,
         देकर उनको संरक्षण बाहुवली, दबंग बनाये।
         करके उनको गुमराह कई बार,
         साम्प्रदायिक दंगे करवाये।
नहीं शरमाते नफरत फैलाते,
काले मन के देसी गोरो....................... बहुत सो लिये.........।


जयन्ती प्रसाद शर्मा 

Friday 17 July 2015

मन के वातायन

मन के वातायन-दरवाजे खुले हुये हैं आ जाओ,
पलक पाँवड़े बिछे हुये है आ जाओ। 
               मैंने अंसुवन की लड़ियों से –
               वन्दनवार सजाया है,
               अपनी साँसों की खुशबु से-
               मन उपवन महकाया है। 
उम्मीदों के चिराग से-
रोशन है पथ आ जाओ।............मन के वातायन .... । 
               रटते रटते नाम तुम्हारा –
               अटक गई मेरी साँसे,
               देखते देखते राह तुम्हारी–
               थक गई हैं मेरी आंखें। 
हो गई इन्तेहा इन्तजार की –
आ जाओ। .................मन के वातायन............. । 
               मौसम की हवायें आकर-
               मुझको तड़पाती है। 
               धू धू कर जल उठता है दिल,
               विरह के शोले भड़काती हैं । 
पड़े फफोले विरहानल के–
आकर सहला जाओ ...........मन के वातायन...... ।
               झाँक कर वातायन से-
               चिढाता है मयंक। 
               मैं हूँ साथ चाँदनी के-
               नहीं तुम साजन के संग। 
तुम्हें कसम है प्यार की–
अब आ जाओ...........मन के वातायन...... ।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Monday 29 June 2015

संघातिक हैं नयन तुम्हारे

संघातिक हैं नयन तुम्हारे,
जब से नजर मिलाई तुमने–
दुर्दिन आये हमारे . . . . संघातिक ......।

कनखइयों से मारी दीठ,
मुस्काईं फिर देकर पीठ।
उतराये सीधे मेरे मन,
चंचल नयन तुम्हारे ढीठ।

वक्र-भंगिमा अड़ गई मन में–
निकसी नहीं निकारे . . . . संघातिक ....।

बिन काजल कजरारे नैन,
कर देते हैं मुझको बेचैन।
फंस गई जान कफस में मेरी,
बदलते करवट बीतति रैन।

घूमूँ दिन भर बना बावला–
ज्यों ज्वारी धन हारे . . . . संघातिक ....।

अब और न मुझे सताओ तुम,
एक दया दिखलाओ तुम।
नहीं निहारो वक्र दृष्टि से,
मृत्यु बिन आई से मुझे बचाओ तुम।

बे मौत न मारा जाँऊ–
तेरी तिरछी नजर के मारे ....संघातिक ....।

जयन्ती प्रसाद शर्मा 

Thursday 18 June 2015

चट पट झट

चंगू तेली मंगू तेली,
आपस में थे दोनों बेली।
थी गुड़िया रानी एक सहेली,
नहीं बीच में इनके कोई पहेली।
सब मिल कर खेला करते थे,
कूंद फांद झगड़ा नित-
नये नये वे करते थे।
वर्षों खेले संग संग सब,
शैशव बीता पता नही कब।
गुड़िया भी जवान हो गई,
तन कर वह कमान हो गई।
ठुमरी की वह तान हो गई,
मनचलों की वह जान हो गई।
मंगू के मन भा गई गुड़िया,
उसके तन मन पर छा गई गुड़िया।
किया प्रणय निवेदन मंगू ने,
गुड़िया बोली धत।
मंगू बोला चट,
चंगू बोला पट।
हो गई दोनों की शादी झट,
नतीजा चट, पट, झट।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Thursday 4 June 2015

संचेतना

संचेतना लोगों की सुप्त हो गई है,
संवेदना मानव की लुप्त हो गई है।
व्यथित नहीं करती किसी को किसी की व्यथा,
सांसारिक कर्म होते रहते हैं यथा।
कोई दुखी कर रहा होता करुण क्रंदन,
पास ही किसी का हो रहा होता अभिनन्दन।
अपनत्वता व्यक्ति में नुक्त हो गई है...भावना संवेदना की.........।
ऐसे ही नहीं कोई किसी को मानता,
स्वार्थ-परता में अनुपयोगी को नहीं कोई जानता।
नहीं सराहता कोई किसी की सहजता-
बिन सारोकार निकट पड़ौसी भी नहीं पहचानता।
अब प्रकृति लोगों की रुक्ष हो गई है...भावना संवेदना की.........।
हर व्यक्ति आज त्रस्त है जीवन में संघर्ष है,
उसका अपना है विचार और अपना ही विमर्ष है।
आज व्यक्ति व्यष्टि है, लोप हो गई समष्टिता,
जानने कुशल क्षेम अपनों की नहीं बरतता कोई शिष्टता।
एकला चलो की भावना हर मन में पुष्ट हो गई है...भावना संवेदना की.......।
महा नगरीय संस्कृति में खो गई सौमनस्यता,
हर मुख पर है तनाव, नि:शेष हो गई है सौख्यता।
दौड़-धूप बन गई है नियति,नहीं पल भर को विश्राम है,
हर पल काम ही काम है और आराम हराम है।
समझौतों से जिंदगी चिंतामुक्त हो गई है...भावना संवेदना की......।            
जयन्ती प्रसाद शर्मा  

Thursday 14 May 2015

चीनी राष्ट्राध्यक्ष का भारत दौरा

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत आये हैं,
अपनी सुन्दर पत्नी मादाम पेंग लियुआन को साथ लाये हैं।
भारत को सपेरों का देश मानकर,
बैरलों में ड्रैगन का विष लाये हैं।
स्वागत सत्कार भारतीय परम्परा है,
मेहमानों का दिल जीतने को-
सुन्दर गीत का अंतरा है।
प्रस्तुतीकरण के विभेद से,
कभी आम कभी संतरा है।
अब यह भारतीय कर्णधारों पर निर्भर है,
कैसे उस विष को अमृत बनाते हैं।
चीनियों की नीति को कैसे देश हित में,
उपयोग में लाते हैं।
चीनी नीति जानने को,
अतीत में जाना होगा।
चीनी पी एम चाऊ एन लाईस के दौरे को,
ध्यान में लाना होगा।
तब भी चीन नेता के स्वागत में,
पलक पांवड़े बिछाये गये थे।
हिन्दी चीनी भाई भाई के,
नारे खूब लगाये गये थे।
कुछ ही महीनों बाद चीन ने,
भारत पर युद्ध थोप दिया था।
प्रगति पथ पर बढते भारत को,
उसने रोक दिया था।
देश के कर्णधारों से,
मुझको यह कहना है।
खूब करो आव-भगत मगर,
सतर्क चीनी चालों से रहना है।
जयन्ती प्रसाद शर्मा    


                              

Saturday 9 May 2015

मैं किस प्रकार अपने पापों का प्रायश्चित करूँ ?

आसन्न प्रसवा गाय हो रही थी बेदम,
निकली पड़ रहीं थी उसकी आँखें और बह रहे थे अश्रु-
तीव्र प्रसव वेदना से।
इठ रहा था उसका शरीर और वह देख रही थी इधर उधर–
असहाय सी।
प्रसव पूर्ण होने से पूर्व वह डकरा उठी तेज आवाज़ में-
और पड़ रही होकर निढाल।
घबड़ाकर मैंने बंद कर लीं अपनी आँखे।
अचानक कौंध उठा एक चेहरा मेरे मस्तिष्क में,
वह चेहरा था मेरी माँ का।
वह माँ जिसे मैं झिड़क देता था बात बात पर,
कर चुका था मैं अनेक बार उसका तिरिस्कार।
वह बिना कोई प्रतिवाद किये, आँखों से अश्रु पौंछते हुये-
हट जाती थी वहाँ से।
मुझे होने लगी अपने आप से नफरत।
मै सोच रहा था मेरी माँ ने भी उठाया होगा कष्ट–
इसी प्रकार।
पी होगी वो भी तीव्र वेदना से और डकराई होगी–
मुझे जनमते समय।
माँ, ओ मेरी माँ मुझे कर देना क्षमा मेरी कृतघ्नता के लिये,
अथवा देना मुझे कठोर दंड मेरी उद्दंडता के लिये।
लेकिन मुझे पता है तू ऐसा कुछ नही करेगी।
मै किस प्रकार अपने पापों का प्रायश्चित करूं?
जयन्ती प्रसाद शर्मा