Sunday 11 January 2015

उड़ गया हंस अकेला

उड़ गया हंस अकेला।
सम्बंधी कोई साथ नहीं है,
रिश्तों की बारात नहीं है।
बेटा, बेटी, नाती, पोते,
दूर नहीं जो तुझसे होते।
छूट गये सब संगी साथी–
छूट गया दुनिया का मेला ..........उड़ गया .......।
झूँठ,  प्रपंच का लिया सहारा,
इसको झटका उसको मारा।
दौलत के अम्बार लगाये,
महल दुमहले भी बनबाये।
धन दौलत सब धरे रह गये-
साथ गया ना धेला ....................उड़ गया...........।
वाणी में तेरी कड़क बड़ी थी,
काया में तेरी अकड़ बड़ी थी।
क्रोध बरसता था आँखों से,
जहर उगलता था बातों से।
टूट गई सांसों की डोरी-
पडा रह गया बदन रुपहला .............उड़ गया..........।
सिया राम मय सब जग जानी,
करहु प्रनाम जोरि दोउ पानी।
दया धर्म का आश्रय लीजे,
प्राणिमात्र की सेवा कीजे।
सत्कर्मों से संत्रास रुकेगा–
जब यम दूतों का आएगा रेला ...........उड़ गया ......।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

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