Monday 20 March 2017

गौरैया

एक नन्हीं सी चिरैया,
छोटी सी प्यारी सी गौरैया।
उमर मेरी हो गई है पचपन,
याद आता है मुझको बचपन।
जब देखता हूँ आँगन में,
एक नन्हीं सी चिरैया........................ छोटी सी प्यारी सी..............।
चूँ चूँ  करती वह आती थी,
रहती थी वह शरमाती सी।
डर डर कर चुगती थी दाना,
वह नन्हीं सी चिरैया.......................... छोटी सी प्यारी सी..............।
छिप छिप कर मैं देखा करता था,
उस संग खेलने को मन करता था।
जब मैं पकड़ने उसको जाता,
झट से उड़ जाती थी नन्हीं सी चिरैया......छोटी सी प्यारी सी...........।
आती थी कभी बच्चों को लेकर,
चोंच से चुग्गा चोंच में देकर।
भरती थी अपना और उनका पेट,
वह नन्हीं सी चिरैया.......................... छोटी सी प्यारी सी...............।

जयन्ती प्रसाद शर्मा 






Saturday 11 March 2017

मन में उमंग लिये

मन में उमंग लिये,
सखियन को संग लिये।
आई मदमाती नारि,
विरज की खोरी में।
                पुकारती फिरे नाम,
                छोड़ूँगी नहीं आज श्याम।
                चटक रंग घोरि लाई,
                बौरी कमोरी में..............आई मदमाती............।
कजरारे रसीले नैन,
मिसरी से मीठे बैन।
कंचुकी से कसे भाव,
ग्वालिन की छोरी ने.................. आई मदमाती.............. ।
               ढूँढ रही होकर विभोर,
               कहाँ छिपे हो चितचोर।
               कर दूँगी सराबोर,
               आज तुम्हें होरी में......आई मदमाती.............. ।
चुपके से आये कन्हैया,
ग्वालिन की पकड़ी बहियाँ।
श्याम न बरजोरी करो,
कर रही चिरौरी मैं.................... आई मदमाती.............. ।
              झटकि बाँह छीन लई मटकी,
              कैसे भूलि गई बात पनघट की।
              रँगी सिर पर से रंग डारि- 
              कियौ नहीं विरोध गोपिका निगोड़ी ने......आई मदमाती......।



जयन्ती प्रसाद शर्मा 

                            चित्र गूगल से साभार 



Thursday 2 March 2017

कृष्ण ने ग्वालिन घेरी दगड़े में

कृष्ण ने ग्वालिन घेरी दगड़े में 
बहुत कियौ बदनाम मोहि-
ब्रज मंडल सिगरे में।   
        घर घर दीन्हीं नंद दुहाई,
        माखन चोर है कृष्ण कन्हाई।
        नहीं तोसे कुछ कम है गैंयाँ
        ग्वालिन खरिक अपने में............कृष्ण ने...........।
ले गई घर मोहि लिवाइ के,
माखन मिश्री मोहि खवाइ के।
बरबस ही नवनीत कटोरा,
दियौ हाथ हमरे में............कृष्ण ने........... ।
        क्या ग्वालिन तेरे मन आई,
        काहे मोसों रार बढ़ाई।
        मेरे सिवाय काम नहीं आवै,
        कोई तेरे बिगड़े में............कृष्ण ने........... ।
हा-हा खाऊँ पडूँ तेरी पइयाँ
करौ क्षमा मोहि कृष्ण कन्हैया।
मैं दर्शन की अभिलाषी बौराई,
कान्हा प्रेम तुम्हरे में............कृष्ण ने........... ।

जयन्ती प्रसाद शर्मा 

चित्र गूगल से साभार