Friday 25 January 2019

मेरा भारत देश!

मेरा भारत देश!
सुजल,सुफल,
सुखद परिवेश।
यहाँ गंगा यमुना बहतीं अविरल,
निर्मल,शीतल पवित्र इनका जल।
रहते मनुष्य निर्लिप्त,
वातावरण में गूंजते-
गीता के उपदेश।
मनो में धर्म का प्रभाव,
उपजाता है बन्धुत्व भाव।
रहती है मिल कर रहने की चाह,
दिया विभूतियों ने सदा-
शान्ति का सन्देश।
धर्म भीरुता बाँधे रखती है,
निरुत्साहित पापों से करती है।
नहीं करने देती अपकर्म,
सम्बल देते हैं-
महापुरुषों के निर्देश।
जय भारत
जयन्ती प्रसाद शर्मा




Friday 18 January 2019

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी!
तेरी ज़िन्दगी
मेरी ज़िन्दगी
इसकी ज़िन्दगी
उसकी ज़िन्दगी
हम सबकी ज़िन्दगी।
रोती है ज़िन्दगी
रुलाती है ज़िन्दगी
हँसती है ज़िन्दगी
हँसाती है ज़िन्दगी
सबकी मुस्कराती है ज़िन्दगी।
सकाम होती है ज़िन्दगी
निष्काम होती है ज़िन्दगी
बदनाम होती है ज़िन्दगी
गुमनाम होती है ज़िन्दगी
अंजाम ढोती है ज़िन्दगी।
चलती है ज़िन्दगी
दौड़ती हैं ज़िन्दगी
घिसटती है ज़िन्दगी
सिमटती है ज़िन्दगी
थमती है पूर्ण विराम पाती है ज़िन्दगी।
यही चिरंतन सत्य है।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Saturday 12 January 2019

जाड़े की एक सुबह

कुहासे की चिलमन से झाँकते सूर्य ने
भेज दीं कुछ किरणें भूमि पर
वे लगीं बड़ी भली
सर्द शरीरों में पड़ गई जान
खुल गए अंग
उठी मन में उमंग
गीत लेने लगे अंगड़ाई
पत्तों पर पड़ी ओस
हो गई विगलित
बहने लगी बन कर जल
नहा उठे वृक्ष
खिल गईं कलियाँ
निखर गए पुष्प
उपवन हो गये मोहक
सर्दी से त्रस्त परिंदे
छोड़ कर नीड़ चहचहाने लगे
समाप्त हो गई नीरवता
पीली कमजोर धूप पसराने लगी
बदन सहलाने लगी
सर्वत्र बिखर गया हेम
जड़जड़ाते लोग
पूंछते कुशल क्षेम
जग जग पड़ा
संसार चल पड़ा
धन्यवाद सूर्यदेव।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

चित्र गूगल से साभार

Sunday 6 January 2019

उलझन

बोला गुरू से शिष्य,
मेरी उलझन सुलझाइए।
अंतरंग परिचय मेरा,
मुझसे कराइये।
मैं मन हूँ या तन हूँ,
नूतन हूँ पुरातन हूँ।
मैं अपने को समझ न सका,
मैं कौन हूँ बताइये।
मैं भोगी हूँ या भोग हूँ,
योगी हूँ या योग हूँ।
मैं कैसे स्वयं को परिभाषित  करूं,
मुझे समझाइये।
इस वासना के संसार में मैं भटक गया हूँ,
हो गया हूँ दिशा भूल और अटक गया हूँ।
कन्टकों में उलझा जीवन,
मुझको बचाइये।
नहीं मैं इधर रहा नहीं उधर रहा,
त्रिशंकु सा अधर में लटका रहा।
इस दुसह्य स्थिति से निकलने  को,
दिशा दिखाइये।
जयन्ती प्रसाद शर्मा