Monday 29 July 2019

ये भी आये, वे भी आये

ये भी आये, वे भी आये,
सभी ही उनके,
जनाजे मे आये।
आये करीबी, आये रकीबी,
रोते थे बिसूरते थे सभी ही।
उनमें से कुछ थे,
मुखौटे लगाये।
कुछ थे देनदार,
कुछ थे लेनदार।
संग वे अपने,
बही खाते भी लाये।
कुछ आये थे निभाने को फ़र्ज,
नहीं थे उनके रसूखों में दर्ज।
वे सिर्फ इंसानियत,
दिखाने को आये।
कुछ थे दबंग कुछ थे धाँसू,
बहाते थे दिखाने को घड़ियाली आँसू।
देख कर पयाम उनका,
कोरों में मुस्कराये।
जयन्ती प्रसाद शर्मा 

Saturday 20 July 2019

घड़ियां इंतज़ार की

घड़ियां इंतज़ार की
लगती हैं पहाड़ सी
पलकें होती हैं बोझिल
आँखें सुर्खरू
जैसे तप्त हों बुखार से।
मनहो जाता है व्याकुल
और तन आकुल
हर आहट पर चौंक उठती है
आ गये सनम।
आवारा बयार का झौंका होगा
अथवा कोई श्वान
खड़का गया दरवाजे के
किवाड़।
न देख कर प्रिय को हुई मायूस
खो गया दिल का चैन
बढ़ गई बेकरारी
पड़ गई हो कर निढाल।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Monday 15 July 2019

भोर भई अब जागो लाल!

भोर भई अब जागो लाल!
मुँह उठाय रँभाइ रही गैया,
बाट देखि रहे ग्वाल।
उदय भये रवि किरण पसारीं,
अम्बर से उतराईं।
चूँ चूँ करती चुगने दाना,
चिड़ियाँ आँगन में आईं।
काहे लाला अब तक  सोवै,
है रहे सब बेहाल।
उठो लाल मुँह हाथ पखारो,
मैं लोटा भर जल लाई।
नित्य कर्म कर बंशीवट जाओ,
प्यारे कृष्ण कन्हाई।
कर कर जतन जगाइ रही मैया,
जागत नहिं नँद लाल।
गावते प्रभाती चले बटोही,
पहुँच गये कई कोस।
प्रखर भई सूर्य की किरणें,
विगलाइ गई है ओस।
कबहू शीश पै हाथ फिरावै,
कबहू चूमती भाल।
देखो कान्हा द्वारे जाय कें,
राधा तुम्हें बुलावै।
अगर रूंठ कर लौट गई वो,
फेरि बगदि नहिं आवै।
भड़भड़ाइ उठि बैठे मोहन,
समझी मैया की चाल।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Thursday 4 July 2019

दहक रहे नफरत के अंगारे

लगता है सर्वत्र आग लगी है,
दहक रहे नफरत के अंगारे।
लाल भभूका हैं सबके मुख,
आरक्त हुऐ गुस्से के मारे।
सूख गये हैं नेह कूप,
जुल्म ढा रही ईर्ष्या की धूप।
दिखता नहीं कहीँ सौहार्द,
जायँ कहाँ अपनों से हारे।
अपनों का चुक गया अपनापन,
रहने लगी सम्बन्धों में अनबन।
गला काटते अपने ही अपनों का,
दुश्मन बन गये प्राणों के प्यार।
देख किसी का उत्कर्ष हाथ मलते हैं,
स्वयं नहीं कुछ कर पाते लेकिन ईर्ष्या करते हैं।
बिना बात करते हैं नफरत,
जिनके उजले तन हैं पर मन काले।

जयन्ती प्रसाद शर्मा