Sunday 24 November 2019

हे ईश्वर, यह क्या हो रहा है !

हे ईश्वर, यह क्या हो रहा है !
जग धू धू कर जल रहा है,
तू बेखबर सो रहा है।
देख यहाँ चल रही है,
कब से नफरत की आँधी।
चढ़ गये इसकी भेंट,
मार्टिन लूथर किंग और गाँधी।
ईर्ष्या की अग्नि,
बढ़ती जा रही है।
गैरों को करके ख़ाक,
अब अपनों को जला रही है।
आज सबसे त्रस्त है नारी,
ममता की मारी।
उसकी सेवाओं का यह सिला,
इंसान उसको दे रहा है।
उसका जन्मा ही बहसी होकर,
बलात्कार का दंश दे रहा है।
माधव ! आपके अवतरित होने को,
यथेष्ठ हो गये हों पाप, तो आइये।
आकर करिये धर्म की रक्षा,
वचन गीता वाला निभाइये। 
जयंती प्रसाद शर्मा

Saturday 16 November 2019

नदिया चंचल

नदिया चंचल,
न हो उच्छृंखल।
कल-कल करती नाद,
धीरे बहो।
सँभालो अपना वेग,
न दिखे लहरों में उद्वेग।
रख नियंत्रण संवेगों पर,
तीरे बहो।
वेगवती तुम नहीं इतराना,
बहुत दूर तक तुमको जाना।
करना है तय लम्बा सफर,
हद में, सुनीरे रहो।
असंयमित हो नहीं तोड़ना कगार,
बिगड़ेगा रूप आयेगी बाढ़।
बह जायेंगे समृद्धि-संस्कृति-संस्कार,
न हो उद्वेलित, धीरे रहो।
जयंती प्रसाद शर्मा

Saturday 9 November 2019

मन की भटकन

मन की भटकन से उसका हर बार निशाना ऊक रहा है,
स्थिर प्रज्ञ नहीं होने से वह लक्ष्य से चूक रहा है।
जानता है उसका थूका उस पर ही गिरेगा,
फिर भी मुँह ऊपर कर थूक रहा है।
कोई नहीं मनायेगा उसको,
फिर भी पगला रूठ रहा है।
तोड़ता रहा है वह औरों के घर,
अब उसका भी घर टूट रहा है।
गाहे बगाहे करता रहा है लूट,
उसका साथी ही उसको लूट रहा है।
दर बदर करता रहा है वह लोगों को,
अब उसका भी दर छूट रहा है।
वह समझ गया है सदा नहीं रहती दबंगई,
ठिकाना अपने छिपने को ढूँढ रहा है।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Friday 1 November 2019

तेरी यादों के शूल

लाख रोकने पर भी निकल जाती है आह,
जब चुभते हैं तेरी यादों के शूल।

तेरी बेवफ़ाई ने करा दिया है अहसास,
वह प्यार न था सिर्फ़ शिगूफ़ा था।

तेरी याद में रो लेते थे,
आँसुओं संग निकल जाता था गुबार।
अब दिल में ही घुमड़ता रहता है।

तेरी बेरुख़ी से भी मिलता है सुकून,
चलो तूने इस क़ाबिल तो समझा।

इल्तिजा है न मुझे देखना उस तरह से,
मैं सह न सकूँगा ताव और मर जाऊँगा।
जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू