Saturday 28 December 2019

बेरहम जाड़े

अरे ओ बेरहम जाड़े,
उमर से हारों को नहीं सता रे।
चलता नहीं तेरा कुछ जोर सेहतमंद पर,
वे रखते हैं तुझको मुठ्ठी में बंद कर।
नहीं करती उन पर कुछ असर शीतल फ़िज़ा रे।
जब हम जवान थे,
नहीं सींकिया पहलवान थे।
बर्फीली ठंडी हवा,
हमें देती थी मज़ा रे।
जब हम थे तरुणाई के गुमान में,
जाकर शून्य से नीचे तापमान में।
दोस्तों संग हम महफ़िल,
लेते थे सजा रे।
बुढ़ापे में हमें तू क्यों सताता है,
कपड़ो को बेध कर सरकता ही आता है।
खिलने दे बसंत के फूल होने दे मौसम अनुकूल,
हम भी बता देंगे तुझको धता रे।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Tuesday 17 December 2019

पिता का संदेश

जा री बिटिया अपने घर,
यहाँ की छोड़ चिंता-फिकर।
सूझ बूझ से घर बार चलाना,
नहीं समस्याओं से घबराना।
सोच विचार करने से दुश्वारी का
रस्ता आता है निकर ...........।
उलझने नहीं देना रिश्तों की डोर,
कस कर पकड़े रहना छोर।
नहीं करना कभी जिरह,
नहीं पति से व्यर्थ के जिकर..।
सास ससुर का करना सम्मान,
हमसा ही उनको देना मान।
ननदी से रखना सौख्य भाव,
देवर-जेठ बन्धु हैं, अवर-प्रवर ...।
रखना नहीं किसी से द्वेष,
पालना नहीं व्यर्थ का क्लेश।
सामाजिक समरसता से निखरेगी,
कीर्ति रश्मियाँ होंगीं प्रखर ........।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Tuesday 3 December 2019

आदमियत

तू एक जरूरी काम कर,
आदमियत का तमगा-
अपने नाम कर।
बेतहाशा पैदा हो रहे इंसान,
जनसंख्या में हो रही वृद्धि।
होना भीड़ में खरा आदमी,
है बड़ी उपलब्धि।
तू बन कर दुखियों का मददगार,
इंसानियत का एहतराम कर। ,
यहाँ होते रहते हैं नाटक,
यह दुनियाँ है एक रंग मंच।
चलते रहते छल छंद यहाँ, 
लोग रचते रहते हैं प्रपंच।
तू छोड़ कर दुनियाँ गीरी,
भलमनसाहत के काम कर।
बड़ा फिरकापरस्त है इंसान,
करता रहता नारी का अपमान।
कोई नहीं है यहाँ समादृत,
मेधा का नहीं होता सम्मान।
तू कर नारी की रक्षा,
मेधावी का सम्मान कर।
किसी को मिल गया खुला आसमां,
किसी को नहीं मिली ज़मीं।
कोई किलोल करता जलधारों में,
किसी को नहीं मिली ज़रूरत भर नमी।
तू कम कर अपनी ज़रूरतें,
वंचितों का इकराम कर।
जयन्ती प्रसाद शर्मा


जयन्ती प्रसाद शर्मा 'दादू'