Friday 27 March 2020

कोरोना!

अवांछित है अनामंत्रित है,
सड़कों पर स्वागत नहीं करोना।
नहि भेटहु नहि गहो हाथ,
दूर ही रहोना।
मानव रक्त का प्यासा है,
सामने पड़ोना।
न घुस सके घरों में बलात,
द्वार बंद रखोना।
रक्तबीज सा है दुर्दमन,
इसकी दृष्टि से बचोना।
बचने को इसके दुष्प्रभाव से,
एकांत वास करोना।
संक्रमितों से बचाव एकमेव उपाय,
न काम करेगा टोना या दिठोना।
जयन्ती प्रसाद शर्मा,दादू ।

Saturday 21 March 2020

विचारों की जुगाली

पड़ा पड़ा खाम खयाली में
करता रहा विचारों की जुगाली मैं
न उठी कोई लहर 
न बनी कोई बहर
मैं हार थक कर
सो गया मुँह ढक कर

नहीं पड़ा मन में चैन
मैं बहुत रहा बेचैन
किया बड़ा जोड़ तोड़
करी शब्दों की तोड़ फोड़
स्वयं को बहुत हिलाया डुलाया
रह कर मौन, जोर से चिल्लाया।

फिर भी न हुआ कुछ हासिल
मेरा श्रम हुआ फाजिल
अपने न कुछ होने की हुई चिंता
अवसाद ग्रस्त हुआ मन, बढ़ी कुंठा
मैं बहुत शर्मिंदा हुआ
चुल्लू भर पानी में डूबने को मन हुआ।

होने पर अपने हामिला होने का भ्रम
बाँझ करती है अनेक उपक्रम
उदर में लेती है हिलोर
जननांग पर देती है जोर
नहीं होना होता है नहीं होता सृजन
मैं छद्म कवि मार कर बैठ जाता हूँ मन।
जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू।

Sunday 15 March 2020

एक कतरा आँसू

एक कतरा आँसू टपक गया है,
नहीं चाहते हुए भी वह फफक गया है।
जतन से छिपाये रखा था उसने ग़मे-दिल,
उसकी नादानी से चमक गया है।
आते ही ज़ेहन में ख़याल उसका,
वह बिना पिये ही बहक गया है।
देख कर उसको अपनी गली में,
वह गुलाब  सा महक गया है।
होते ही दीदार सनम का,
वह पंछी सा चहक गया है।
उसकी नज़रों की तल्ख़ी से,
वह सलीब पर लटक गया है।
बेरुख़ी का पत्थर लगते ही,
नादाँ दिल शीशे सा चटक गया गया है।

जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू ।

Sunday 8 March 2020

बरसाइये प्रेम रंग होली में

मिटें क्लेश,
नि:शेष हों विद्वेष।
जला दीजिये होली में दुर्भावना।
उड़ाओ सद्भावना का गुलाल,
सब हों खुशहाल।
न हो किसी को मलाल,
बनाइये सुखों की प्रस्तावना।
न मरें उमंग,
बरसाइये प्रेम रंग।
होयें सब सतरंग,
बनी रहे सद्भावों की संभावना।
करिये गुरुजनों को प्रणाम,
हम उम्र को राम राम ,सलाम।
चरम पंथ का हो विनाश,
होवे प्रेम पंथ की स्थापना।

जयन्ती प्रसाद शर्मा,"दादू"।


Saturday 7 March 2020

सनम बेवफ़ा

सनम बेवफ़ा!
करते हो वायदा वफ़ा का हर दफा।
पता नहीं तुम भूल जाते हो,
या जान कर करते जफ़ा।
तुम कामयाब तिजारती हो,
बेवफ़ाई में भी देखते होगे नफ़ा।
है बेवफ़ाई फितरत तुम्हारी,
हम जानकर भी करते वफ़ा।
अपनी आदत से मज़बूर हैं हम,
इसी लिये नहीं होते खफ़ा।
ये तुम्हारी आदत है या कुछ और,
अब करनी होगी तुम्हें हर  बात सफ़ा।
जयन्ती प्रसाद शर्मा। 

Sunday 1 March 2020

ओ राही न सोच मंज़िल की

चंद अश्आर :
वाजिब है तुम्हारा रूंठना
मगर यह तो देख लेते
मुझमें मनाने का-
शऊर है या नहीं।

कहीं तुम वही तो नहीं
जिसके ख़यालों से झनझना उठता हूँ
सनसना उठती है दिमाग़ की पतीली
मन में आने लगता है उफान।

ओ राही न सोच मंज़िल की
चलता रहेगा पहुँचेगा कहीं न कहीं
वैसे भी किस्मत के आगे
किसकी चली है।

मैं नहीं होना चाहता हूँ बेचैन
नहीं उग्र
बस रफ़्ता रफ़्ता यों ही चलती रहे
ज़िन्दगी।

जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू।