मौसम सुहाना हो गया है,
समाँ आशिकाना हो गया है।
जिन रास्तों पर अक्सर आते जाते थे,
उन पर चले बिना एक जमाना हो गया है।
जो अशआर बिखरे पड़े थे,
उनके मिलने पर सुन्दर तराना हो गया है।
उजड़ा दयार आपकी इनायत से,
खुशियों का खजाना हो गया है।
किसी रूंठे को मनाने की कोशिशें,
खुद को झिकाना हो गया है।
जहाँ बैठ कर तलाशते थे दिल का सकून,
वह जगह अब मनचलों का ठिकाना हो गया है।
कदम उठाते ही लोग छेकते हैं रास्ता,
अब दुश्वार मिलना मिलाना हो गया है।
कल तक न था जिसको कुछ शऊर,
रूप उसका कातिलाना हो गया है।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
समाँ आशिकाना हो गया है।
जिन रास्तों पर अक्सर आते जाते थे,
उन पर चले बिना एक जमाना हो गया है।
जो अशआर बिखरे पड़े थे,
उनके मिलने पर सुन्दर तराना हो गया है।
उजड़ा दयार आपकी इनायत से,
खुशियों का खजाना हो गया है।
किसी रूंठे को मनाने की कोशिशें,
खुद को झिकाना हो गया है।
जहाँ बैठ कर तलाशते थे दिल का सकून,
वह जगह अब मनचलों का ठिकाना हो गया है।
कदम उठाते ही लोग छेकते हैं रास्ता,
अब दुश्वार मिलना मिलाना हो गया है।
कल तक न था जिसको कुछ शऊर,
रूप उसका कातिलाना हो गया है।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
4 comments:
वाह
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-04-2019) को "मौसम सुहाना हो गया है" (चर्चा अंक-3294) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रूप उसका ....
बेहतरीन
रूप उसका ....
बेहतरीन
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