Friday 27 September 2019

प्यासी धरती

प्यासी धरती रही पुकार,
सावन वेग अइयो रे।
वेग अइयो रे,
जल के मेघ लइयो रे।
सूखे कंठ लगा रहे रटंत-
पानी पानी।
नन्हीं मुनियाँ सटक न पाये,
जल बिन गुड़ धानी।
नन्हे हाथ उठा रोकती बदरा,
बिन बरसे मत जइयो रे।
ढूंढते नगरी-नगरी गाँव -गाँव,
नहीं मुठ्ठी भर मिल रही छाँव।
बहुतेरौ रोकौ समझायौ,
जंगल नहीं कटइयो रे।
सूखी नदियाँ सूखे तलाब,
जल बिन जलता जग ज्यों अलाव।
अइयो रे सावन मन भावन,
अगन तन मन की सितलइयो रे।
जयन्ती प्रसाद शर्मा 'दादू'
चित्र गूगल से साभार 


Saturday 14 September 2019

बीती रात हुआ सबेरा

बीती रात हुआ सबेरा,
दूर हर गम।
काली रात के गुनाह समेटे,
भाग गया तम।
लाल रंग उषा का,
प्राची में झलका।
हुई निराशा दूर,
सूर्य आशा का चमका।
मदहोशी हुई दूर,
हुआ अलस कम।
जाग गई मुन्नी,
शौच को भागा मुन्ना।
पड़ा द्वार पर कालू कुत्ता,
हुआ चौकन्ना।
झुनियॉँ की पायल बोली,
छम छम।
मुर्गा बोला मिमिया उठी अजा,
रंभाई गैया।
उड़े आसमान में विहग,
चह चहाई चिरैया।
मस्जिदों में होने लगी अजान,
मंदिरों में बम बम।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Friday 6 September 2019

तुम बुहार न सको

तुम बुहार न सको किसी का पथ कोई बात नहीं,
किसी की राह में कंटक बिखराना नहीं।
न कर सको किसी की मदद कोई बात नहीं,
किसी की बनती में रोड़े अटकाना नहीं।
न निभा सको किन्हीं सम्बन्धों को कोई बात नहीं,
तुम रिश्तों की डोर उलझाना नहीं।
न घोल सको वाणी में मिठास कोई बात नहीं,
कड़वे बोलों के नस्तर लगाना नहीं।
नहीं कर सको किसी का मार्ग दर्शन कोई बात नहीं,
इधर उधर की बातों से भटकाना नहीं।
नहीं कर सको किसी का पथ रोशन कोई बात नहीं,
किसी की राह के दिये बुझाना नहीं।
तुम रह न सको सत्य पथ पर अडिग कोई बात नही,
झूंठ पर सत्य का मुलम्मा चढ़ाना नहीं।
जयन्ती प्रसाद शर्मा 'दादू'