प्यासी धरती रही पुकार,
सावन वेग अइयो रे।
वेग अइयो रे,
जल के मेघ लइयो रे।
सूखे कंठ लगा रहे रटंत-
पानी पानी।
नन्हीं मुनियाँ सटक न पाये,
जल बिन गुड़ धानी।
नन्हे हाथ उठा रोकती बदरा,
बिन बरसे मत जइयो रे।
ढूंढते नगरी-नगरी गाँव -गाँव,
नहीं मुठ्ठी भर मिल रही छाँव।
बहुतेरौ रोकौ समझायौ,
जंगल नहीं कटइयो रे।
सूखी नदियाँ सूखे तलाब,
जल बिन जलता जग ज्यों अलाव।
अइयो रे सावन मन भावन,
अगन तन मन की सितलइयो रे।
जयन्ती प्रसाद शर्मा 'दादू'
चित्र गूगल से साभार
सावन वेग अइयो रे।
वेग अइयो रे,
जल के मेघ लइयो रे।
सूखे कंठ लगा रहे रटंत-
पानी पानी।
नन्हीं मुनियाँ सटक न पाये,
जल बिन गुड़ धानी।
नन्हे हाथ उठा रोकती बदरा,
बिन बरसे मत जइयो रे।
ढूंढते नगरी-नगरी गाँव -गाँव,
नहीं मुठ्ठी भर मिल रही छाँव।
बहुतेरौ रोकौ समझायौ,
जंगल नहीं कटइयो रे।
सूखी नदियाँ सूखे तलाब,
जल बिन जलता जग ज्यों अलाव।
अइयो रे सावन मन भावन,
अगन तन मन की सितलइयो रे।
जयन्ती प्रसाद शर्मा 'दादू'
चित्र गूगल से साभार