Friday 30 August 2019

जय श्री राम

सबकी बिगड़ी बन जाये,
जय श्री राम जय श्री राम।
नहीं मौत किसी की असमय आये,
जय श्री राम जय श्री राम।
पूरण होवे सबके काम, 
जय श्री राम जय श्री राम।
नहीं लालची, सब हों निष्काम,
जय श्री राम जय श्री राम ।
धन धान्य से भरे रहें भंडार,
जय श्री राम जय श्री राम।
करते रहें लोग उपकार,
जय श्री राम जय श्री राम।
भृष्टाचारी पापी हों गारत,
जय श्री राम जय श्री राम।
विश्व गुरू बने भारत, 
जय श्री राम जय श्री राम।
सुखी समृद्ध होय प्रजा,
जय श्री राम जय श्री राम।
पापाचारी को मिले सजा,
जय श्री राम जय श्री राम।
जन प्रतिनिधियों की हो बुद्धि शुद्ध,
जय श्री राम जय श्री राम।
समादृत होते रहें प्रबुद्ध,
जय श्री राम जय श्री राम।
जयन्ती प्रसाद शर्मा, 'दादू '


Friday 23 August 2019

नँद नन्दन कित गये

नँद नन्दन कित गये दुराय !
ढूँढत घूमी सिगरी बृज भूमी,
गये मेरे पायँ पिराय।
कान्हां , मैं तुम्हरे प्रेम में बौरि गई,
औंधाई गगरी पनघट दौरि गई।
देखूँ इत उत उचकि उचकि,
कहीं पड़ते नहीं लखाय।
भ्रमित भई सुनि भँवरे की गुंजन,
ढूंढे सघन करील की कुंजन।
रे मनमोहन तेरे दर्शन बिन,
नैन रहे अकुलाय।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
चित्र गूगल से साभार


Friday 9 August 2019

हे वीर सैनिक तुमको नमन

सबकी अपनी अपनी ढपली,
अपना अपना राग।
किसी को सुहाता है सावन,
किसी को भाता फाग।
जब सब गाते कजरी-टप्पे,
वे गीत ओज के गाते हैं।
सीमा पर रहते मुस्तैद,
नहीं मौसम उन्हें डराते हैं।
वे रहते हैं सदा सजग,
कोई लगा न दे कभी आग।
न कोई उनको गर्मी,
न कोई उनको सर्दी।
न कोई उनकी इच्छा ,
न कोई उनकी मर्जी।
वे रहते हैं चौकन्ने,
खतरा होने पर गोली देते दाग।
जब मनाते सभी दिवाली,
वे खेलते खून की होली।
होता है वह वीर शहीद,
जिसको दुश्मन की लगती गोली।
पल भर में उसके घर में,
डेरा डाल देता दुहाग।
हे वीर बाहु तुमको नमन, 
हे सुबाहु तुमको नमन।
देश की रक्षा को दिये प्राण,
हे बलिदानी तुमको नमन।
युद्ध में रत रहे अंत तक,
नहीं पीठ दिखा कर आये भाग।

जयन्ती प्रसाद शर्मा 'दादू'

चित्र गूगल से साभार 

Sunday 4 August 2019

सावन मनभावन

घिर घिर बदरा आबते, बिन बरसें उड़ जांय।
नीको जोर दिखावते ,पर बरसत हैं नायँ।
पर बरसत हैं नायँ ,दया नहि दिखलाते हैं।
गरजत चमकत खूब,नहीं जल बरसाते हैं।
रहते चलायमान ,बादल रहते नहीं थिर।
नहि होती बरसात, जलद आते हैं घिर घिर।

सावन सगुन मनाइये झूला झूलौ जाय, 
पैंग बढ़ाइ लेउ पकड़ बदरा उड़ नहि जाय।
बदरा उड़ नहि जाय  मेघ बरस पहले यहाँ ,
फिर चाहौ उड़ जाउ  या बरसौ चाहे जहाँ।
कह दादू कविराय जल बरसाते श्याम घन,
भले गये दिन आय  झूम कर आया सावन।
                       

जयन्ती प्रसाद शर्मा