Sunday 21 June 2020

नादान चीन

नादान चीन,
समझना भारत को बलहीन-
भारी पड़ेगा,
खून के आँसू -
तुझे रोना पड़ेगा।

सन 62 में भाई बनकर,
किया था धोखा।
हम घर सँभालने में लगे थे ,
तूने युद्ध थोपा।
तब परिस्थियाँ भिन्न थीं,
नेतृत्व भिन्न था।
पड़ौसी देशों के व्यवहार से,
मन खिन्न था।

58 वर्षों के अंतराल में,
सब हमको जान गये हैं।
हम सबको पहचान गये हैं।
हम हैं तैयार,
आजा दो दो हाथ करले।

आगे पीछे का चुकता,
सब हिसाब करलें।

जयन्ती प्रसाद शर्मा