Sunday 25 November 2018

हाइकु

मेरा भारत
अनेक भाषाभाषी
रहते यहां।

पालते धर्म
बिना भेदभाव के
करते कर्म।

हवा सबकी
आसमान सबका
जमीं सबकी।

झंडा उठाओ
'जय भारत माता'
नारे लगाओ।

करो न शक
हैं सब देशभक्त
नहीं संदेह।

करो प्रयास
दल दल दलों का
हो जाये साफ।

साफ कर दो
कूड़ा राजनीति का
अभियान से।

साकार करो
सपना भारत का
हो विश्वगुरु।


जयन्ती प्रसाद शर्मा




Saturday 17 November 2018

हम नहीं थे इनके

हम नहीं थे इनके नहीं थे उनके,
सबके ही हम खास रहे।
नहीं किसी से दूर रहे,
सबके ही हम पास  रहे।
जो मिला उसे अपना समझा,
जो नहीं मिला उसे सपना समझा।
रूठे अपने टूटे सपने,
नहीं रोये नहीं उदास रहे।
चूमना चाहते थे हम गगन,
छू भी न सके पर रहे मगन।
नहीं विफलता से हुए विकल,
असफलता से नहीं निराश रहे।
झेले जीवन में झंझावात,
करने पड़ जाते थे उपवास।
नहीं घबड़ाये नहीं बिल्लाये,
नहीं हालातों के दास रहे।
नहीं समेटने की रही भावना,
नहीं घर भरने की रही कामना।
सारा जहाँ हमारा था,
सर्वे भवन्तु सुखिन को करते हम प्रयास रहे।

जयन्ती प्रसाद शर्मा


Friday 9 November 2018

बोलौ गोरी रहिहौं कित में,

बोलौ गोरी रहिहौं कित में,
कै काहू के आईं पाहुने,
देखी नहीं कबहू इत में।
मैं सब बीथिन में आवत जावत, 
घूमूँ वनखड़ में गऊ चरावत।
सिगरौ वृज मेरौ देखौ भालौ,
तुम दिखीं नहीं कबहू उत में।
कै तुम आईं नंद बवा के,
सर्वाधिक गउएँ खरिक में जाके।
कै तुम भूलि गयी हौ पथ,
चैन नहीं चित में।
बोलौ मैं का कर्म करूं,
तुम्हें कहाँ बिठाऊँ कहाँ धरूं।
छोड़ शर्म कहौ करिबे कूँ,
जो हो कर्म तुम्हारे हित में।
जयन्ती प्रसाद शर्मा






Monday 5 November 2018

गांधीगीरी

अपनी नेतागीरी चमकाने को,
दबंग को गांधीगीरी दिखाने को।
वे पहुँच गये लेकर गुलाब के फूल,
पर वह नहीं हुआ अनुकूल।
फेंक दिये उसने नोंचकर फूल-
और चटा दी उनको धूल।
हाथ-पैर तुड़ाकर,
सिर फुटौबल करा कर।
चारपाई पर पड़े पड़े कराह रहे हैं,
गांधीगीरी ईजाद करने वालों को-
गालियाँ सुना रहे हैं। 

जयन्ती प्रसाद शर्मा