Saturday 28 December 2019

बेरहम जाड़े

अरे ओ बेरहम जाड़े,
उमर से हारों को नहीं सता रे।
चलता नहीं तेरा कुछ जोर सेहतमंद पर,
वे रखते हैं तुझको मुठ्ठी में बंद कर।
नहीं करती उन पर कुछ असर शीतल फ़िज़ा रे।
जब हम जवान थे,
नहीं सींकिया पहलवान थे।
बर्फीली ठंडी हवा,
हमें देती थी मज़ा रे।
जब हम थे तरुणाई के गुमान में,
जाकर शून्य से नीचे तापमान में।
दोस्तों संग हम महफ़िल,
लेते थे सजा रे।
बुढ़ापे में हमें तू क्यों सताता है,
कपड़ो को बेध कर सरकता ही आता है।
खिलने दे बसंत के फूल होने दे मौसम अनुकूल,
हम भी बता देंगे तुझको धता रे।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Tuesday 17 December 2019

पिता का संदेश

जा री बिटिया अपने घर,
यहाँ की छोड़ चिंता-फिकर।
सूझ बूझ से घर बार चलाना,
नहीं समस्याओं से घबराना।
सोच विचार करने से दुश्वारी का
रस्ता आता है निकर ...........।
उलझने नहीं देना रिश्तों की डोर,
कस कर पकड़े रहना छोर।
नहीं करना कभी जिरह,
नहीं पति से व्यर्थ के जिकर..।
सास ससुर का करना सम्मान,
हमसा ही उनको देना मान।
ननदी से रखना सौख्य भाव,
देवर-जेठ बन्धु हैं, अवर-प्रवर ...।
रखना नहीं किसी से द्वेष,
पालना नहीं व्यर्थ का क्लेश।
सामाजिक समरसता से निखरेगी,
कीर्ति रश्मियाँ होंगीं प्रखर ........।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Tuesday 3 December 2019

आदमियत

तू एक जरूरी काम कर,
आदमियत का तमगा-
अपने नाम कर।
बेतहाशा पैदा हो रहे इंसान,
जनसंख्या में हो रही वृद्धि।
होना भीड़ में खरा आदमी,
है बड़ी उपलब्धि।
तू बन कर दुखियों का मददगार,
इंसानियत का एहतराम कर। ,
यहाँ होते रहते हैं नाटक,
यह दुनियाँ है एक रंग मंच।
चलते रहते छल छंद यहाँ, 
लोग रचते रहते हैं प्रपंच।
तू छोड़ कर दुनियाँ गीरी,
भलमनसाहत के काम कर।
बड़ा फिरकापरस्त है इंसान,
करता रहता नारी का अपमान।
कोई नहीं है यहाँ समादृत,
मेधा का नहीं होता सम्मान।
तू कर नारी की रक्षा,
मेधावी का सम्मान कर।
किसी को मिल गया खुला आसमां,
किसी को नहीं मिली ज़मीं।
कोई किलोल करता जलधारों में,
किसी को नहीं मिली ज़रूरत भर नमी।
तू कम कर अपनी ज़रूरतें,
वंचितों का इकराम कर।
जयन्ती प्रसाद शर्मा


जयन्ती प्रसाद शर्मा 'दादू' 

Sunday 24 November 2019

हे ईश्वर, यह क्या हो रहा है !

हे ईश्वर, यह क्या हो रहा है !
जग धू धू कर जल रहा है,
तू बेखबर सो रहा है।
देख यहाँ चल रही है,
कब से नफरत की आँधी।
चढ़ गये इसकी भेंट,
मार्टिन लूथर किंग और गाँधी।
ईर्ष्या की अग्नि,
बढ़ती जा रही है।
गैरों को करके ख़ाक,
अब अपनों को जला रही है।
आज सबसे त्रस्त है नारी,
ममता की मारी।
उसकी सेवाओं का यह सिला,
इंसान उसको दे रहा है।
उसका जन्मा ही बहसी होकर,
बलात्कार का दंश दे रहा है।
माधव ! आपके अवतरित होने को,
यथेष्ठ हो गये हों पाप, तो आइये।
आकर करिये धर्म की रक्षा,
वचन गीता वाला निभाइये। 
जयंती प्रसाद शर्मा

Saturday 16 November 2019

नदिया चंचल

नदिया चंचल,
न हो उच्छृंखल।
कल-कल करती नाद,
धीरे बहो।
सँभालो अपना वेग,
न दिखे लहरों में उद्वेग।
रख नियंत्रण संवेगों पर,
तीरे बहो।
वेगवती तुम नहीं इतराना,
बहुत दूर तक तुमको जाना।
करना है तय लम्बा सफर,
हद में, सुनीरे रहो।
असंयमित हो नहीं तोड़ना कगार,
बिगड़ेगा रूप आयेगी बाढ़।
बह जायेंगे समृद्धि-संस्कृति-संस्कार,
न हो उद्वेलित, धीरे रहो।
जयंती प्रसाद शर्मा

Saturday 9 November 2019

मन की भटकन

मन की भटकन से उसका हर बार निशाना ऊक रहा है,
स्थिर प्रज्ञ नहीं होने से वह लक्ष्य से चूक रहा है।
जानता है उसका थूका उस पर ही गिरेगा,
फिर भी मुँह ऊपर कर थूक रहा है।
कोई नहीं मनायेगा उसको,
फिर भी पगला रूठ रहा है।
तोड़ता रहा है वह औरों के घर,
अब उसका भी घर टूट रहा है।
गाहे बगाहे करता रहा है लूट,
उसका साथी ही उसको लूट रहा है।
दर बदर करता रहा है वह लोगों को,
अब उसका भी दर छूट रहा है।
वह समझ गया है सदा नहीं रहती दबंगई,
ठिकाना अपने छिपने को ढूँढ रहा है।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Friday 1 November 2019

तेरी यादों के शूल

लाख रोकने पर भी निकल जाती है आह,
जब चुभते हैं तेरी यादों के शूल।

तेरी बेवफ़ाई ने करा दिया है अहसास,
वह प्यार न था सिर्फ़ शिगूफ़ा था।

तेरी याद में रो लेते थे,
आँसुओं संग निकल जाता था गुबार।
अब दिल में ही घुमड़ता रहता है।

तेरी बेरुख़ी से भी मिलता है सुकून,
चलो तूने इस क़ाबिल तो समझा।

इल्तिजा है न मुझे देखना उस तरह से,
मैं सह न सकूँगा ताव और मर जाऊँगा।
जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू 

Saturday 26 October 2019

ब्रज धाम

अति पावन माँटी है ब्रज की,
तिलक लगाऔ समझि कें चन्दन।
श्रद्धा सौं भैंटहु ब्रजवासिन,
करत रहे केलि इन सँग नँद नंदन।

गैया पूज्य हैं जमुना पूज्य है,
पूज्य है सिगरी ब्रज भूमी।
यहाँ धेनु चरावत घूमे कान्हा,
उन सँग राधा हू घूमी।

अति पवित्र है धाम वृन्दावन,
यहाँ रास रचाते रहे कन्हैया।
ग्वाल-बाल सँग धेनु चराते,
वेणु बजाते कदंब की छैयाँ।

बड़े भाग हैं उन जन के,
जिन दर्शन ब्रज धाम कौ कीन्हौं।
मानुष हैवे कौ फल पायौ,
जनम सफल अपनौं करि लीन्हौं।
जयन्ती प्रसाद शर्मा



Friday 18 October 2019

खुशियों के पल

चाँद-चाँदनी की अनुपस्थिति में,
तारे खिलखिला रहे हैं।
कभी कभी अमावस भी होनी चाहिये।

बिलों से निकल कर चूहे-
कर रहे हैं धमाचौकड़ी।
आज पूसी मौंसी घर पर नहीं है,
आओ कुछ देर हँसलें खेल लें।

मित्रो, आज बॉस नहीं हैं,
चलो रमी खेल लेते हैं।

आज अवकाश है।
भूल कर चिंता फिकर-
पिकनिक पर चलें।

इस दुर्गंधमय वातावरण में,
अय गुलाब तू क्यों महक रहा है।
चल समेट ले अपनी गंध,
तुझे यहाँ कौन रहने देगा।

छोटी छोटी खुशियों के पलों में-
चहक लेते हैं।
क्या पता ये भी फिर,
मिलें न मिलें।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Saturday 12 October 2019

प्यार की प्यास,

सबको प्यार की प्यास,
मुझको भी प्यार की प्यास
दूर दूर सब रहते मुझसे,
पड़ा अकेला बातें करता खुद से।
रहूँ बुलाता इसको-उसको,
कोई नहीं आता पास।
लगता है अब जाने की हुई उमर,
मैं उपेक्षित हुआ बदली लोगों की नजर।
अपनों के बेगानेपन से,
टूटी जीवन की आस।
मैं चाहता हूँ कोई मुझसे प्यार करे,
हँस करके बातें दो चार करे।
कन्नी काट निकल जाते हैं,
मेरे खासम ख़ास।
मैं क्यों जीवन का उत्सर्ग करूं,
क्यों नहीं अपने अतीत पर गर्व करूँ।
मेरी गर्वोक्त का मजाक बना कर,
उड़ाते लोग उपहास
जयंती प्रसाद शर्मा

Saturday 5 October 2019

माँ की महिमा अपरम्पार

बंधु मेरे नवरातों में,
जागा करिये रातों में।
माँ की भक्ति में रम जाओ,
जाया करिये जगरातों में।

माँ की महिमा अपरम्पार,
करती भक्तों का बेड़ा पार।
बिन माँगे सब कुछ पाओगे,
जाकर देखो उसके द्वार।

माँ का भव्य सजा दरबार,
करिये दर्शन, करिये जयकार।
माता तुमको बुला रही है,
राह तुम्हारी रही निहार।

भक्तो माँ से लगन लगाओ,
भक्ति में उसकी तुम रम जाओ।
जय माता दी कहते कहते,
मंदिर की सीढ़ी चढ़ते जाओ।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Friday 27 September 2019

प्यासी धरती

प्यासी धरती रही पुकार,
सावन वेग अइयो रे।
वेग अइयो रे,
जल के मेघ लइयो रे।
सूखे कंठ लगा रहे रटंत-
पानी पानी।
नन्हीं मुनियाँ सटक न पाये,
जल बिन गुड़ धानी।
नन्हे हाथ उठा रोकती बदरा,
बिन बरसे मत जइयो रे।
ढूंढते नगरी-नगरी गाँव -गाँव,
नहीं मुठ्ठी भर मिल रही छाँव।
बहुतेरौ रोकौ समझायौ,
जंगल नहीं कटइयो रे।
सूखी नदियाँ सूखे तलाब,
जल बिन जलता जग ज्यों अलाव।
अइयो रे सावन मन भावन,
अगन तन मन की सितलइयो रे।
जयन्ती प्रसाद शर्मा 'दादू'
चित्र गूगल से साभार 


Saturday 14 September 2019

बीती रात हुआ सबेरा

बीती रात हुआ सबेरा,
दूर हर गम।
काली रात के गुनाह समेटे,
भाग गया तम।
लाल रंग उषा का,
प्राची में झलका।
हुई निराशा दूर,
सूर्य आशा का चमका।
मदहोशी हुई दूर,
हुआ अलस कम।
जाग गई मुन्नी,
शौच को भागा मुन्ना।
पड़ा द्वार पर कालू कुत्ता,
हुआ चौकन्ना।
झुनियॉँ की पायल बोली,
छम छम।
मुर्गा बोला मिमिया उठी अजा,
रंभाई गैया।
उड़े आसमान में विहग,
चह चहाई चिरैया।
मस्जिदों में होने लगी अजान,
मंदिरों में बम बम।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Friday 6 September 2019

तुम बुहार न सको

तुम बुहार न सको किसी का पथ कोई बात नहीं,
किसी की राह में कंटक बिखराना नहीं।
न कर सको किसी की मदद कोई बात नहीं,
किसी की बनती में रोड़े अटकाना नहीं।
न निभा सको किन्हीं सम्बन्धों को कोई बात नहीं,
तुम रिश्तों की डोर उलझाना नहीं।
न घोल सको वाणी में मिठास कोई बात नहीं,
कड़वे बोलों के नस्तर लगाना नहीं।
नहीं कर सको किसी का मार्ग दर्शन कोई बात नहीं,
इधर उधर की बातों से भटकाना नहीं।
नहीं कर सको किसी का पथ रोशन कोई बात नहीं,
किसी की राह के दिये बुझाना नहीं।
तुम रह न सको सत्य पथ पर अडिग कोई बात नही,
झूंठ पर सत्य का मुलम्मा चढ़ाना नहीं।
जयन्ती प्रसाद शर्मा 'दादू'

Friday 30 August 2019

जय श्री राम

सबकी बिगड़ी बन जाये,
जय श्री राम जय श्री राम।
नहीं मौत किसी की असमय आये,
जय श्री राम जय श्री राम।
पूरण होवे सबके काम, 
जय श्री राम जय श्री राम।
नहीं लालची, सब हों निष्काम,
जय श्री राम जय श्री राम ।
धन धान्य से भरे रहें भंडार,
जय श्री राम जय श्री राम।
करते रहें लोग उपकार,
जय श्री राम जय श्री राम।
भृष्टाचारी पापी हों गारत,
जय श्री राम जय श्री राम।
विश्व गुरू बने भारत, 
जय श्री राम जय श्री राम।
सुखी समृद्ध होय प्रजा,
जय श्री राम जय श्री राम।
पापाचारी को मिले सजा,
जय श्री राम जय श्री राम।
जन प्रतिनिधियों की हो बुद्धि शुद्ध,
जय श्री राम जय श्री राम।
समादृत होते रहें प्रबुद्ध,
जय श्री राम जय श्री राम।
जयन्ती प्रसाद शर्मा, 'दादू '


Friday 23 August 2019

नँद नन्दन कित गये

नँद नन्दन कित गये दुराय !
ढूँढत घूमी सिगरी बृज भूमी,
गये मेरे पायँ पिराय।
कान्हां , मैं तुम्हरे प्रेम में बौरि गई,
औंधाई गगरी पनघट दौरि गई।
देखूँ इत उत उचकि उचकि,
कहीं पड़ते नहीं लखाय।
भ्रमित भई सुनि भँवरे की गुंजन,
ढूंढे सघन करील की कुंजन।
रे मनमोहन तेरे दर्शन बिन,
नैन रहे अकुलाय।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
चित्र गूगल से साभार


Friday 9 August 2019

हे वीर सैनिक तुमको नमन

सबकी अपनी अपनी ढपली,
अपना अपना राग।
किसी को सुहाता है सावन,
किसी को भाता फाग।
जब सब गाते कजरी-टप्पे,
वे गीत ओज के गाते हैं।
सीमा पर रहते मुस्तैद,
नहीं मौसम उन्हें डराते हैं।
वे रहते हैं सदा सजग,
कोई लगा न दे कभी आग।
न कोई उनको गर्मी,
न कोई उनको सर्दी।
न कोई उनकी इच्छा ,
न कोई उनकी मर्जी।
वे रहते हैं चौकन्ने,
खतरा होने पर गोली देते दाग।
जब मनाते सभी दिवाली,
वे खेलते खून की होली।
होता है वह वीर शहीद,
जिसको दुश्मन की लगती गोली।
पल भर में उसके घर में,
डेरा डाल देता दुहाग।
हे वीर बाहु तुमको नमन, 
हे सुबाहु तुमको नमन।
देश की रक्षा को दिये प्राण,
हे बलिदानी तुमको नमन।
युद्ध में रत रहे अंत तक,
नहीं पीठ दिखा कर आये भाग।

जयन्ती प्रसाद शर्मा 'दादू'

चित्र गूगल से साभार 

Sunday 4 August 2019

सावन मनभावन

घिर घिर बदरा आबते, बिन बरसें उड़ जांय।
नीको जोर दिखावते ,पर बरसत हैं नायँ।
पर बरसत हैं नायँ ,दया नहि दिखलाते हैं।
गरजत चमकत खूब,नहीं जल बरसाते हैं।
रहते चलायमान ,बादल रहते नहीं थिर।
नहि होती बरसात, जलद आते हैं घिर घिर।

सावन सगुन मनाइये झूला झूलौ जाय, 
पैंग बढ़ाइ लेउ पकड़ बदरा उड़ नहि जाय।
बदरा उड़ नहि जाय  मेघ बरस पहले यहाँ ,
फिर चाहौ उड़ जाउ  या बरसौ चाहे जहाँ।
कह दादू कविराय जल बरसाते श्याम घन,
भले गये दिन आय  झूम कर आया सावन।
                       

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Monday 29 July 2019

ये भी आये, वे भी आये

ये भी आये, वे भी आये,
सभी ही उनके,
जनाजे मे आये।
आये करीबी, आये रकीबी,
रोते थे बिसूरते थे सभी ही।
उनमें से कुछ थे,
मुखौटे लगाये।
कुछ थे देनदार,
कुछ थे लेनदार।
संग वे अपने,
बही खाते भी लाये।
कुछ आये थे निभाने को फ़र्ज,
नहीं थे उनके रसूखों में दर्ज।
वे सिर्फ इंसानियत,
दिखाने को आये।
कुछ थे दबंग कुछ थे धाँसू,
बहाते थे दिखाने को घड़ियाली आँसू।
देख कर पयाम उनका,
कोरों में मुस्कराये।
जयन्ती प्रसाद शर्मा 

Saturday 20 July 2019

घड़ियां इंतज़ार की

घड़ियां इंतज़ार की
लगती हैं पहाड़ सी
पलकें होती हैं बोझिल
आँखें सुर्खरू
जैसे तप्त हों बुखार से।
मनहो जाता है व्याकुल
और तन आकुल
हर आहट पर चौंक उठती है
आ गये सनम।
आवारा बयार का झौंका होगा
अथवा कोई श्वान
खड़का गया दरवाजे के
किवाड़।
न देख कर प्रिय को हुई मायूस
खो गया दिल का चैन
बढ़ गई बेकरारी
पड़ गई हो कर निढाल।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Monday 15 July 2019

भोर भई अब जागो लाल!

भोर भई अब जागो लाल!
मुँह उठाय रँभाइ रही गैया,
बाट देखि रहे ग्वाल।
उदय भये रवि किरण पसारीं,
अम्बर से उतराईं।
चूँ चूँ करती चुगने दाना,
चिड़ियाँ आँगन में आईं।
काहे लाला अब तक  सोवै,
है रहे सब बेहाल।
उठो लाल मुँह हाथ पखारो,
मैं लोटा भर जल लाई।
नित्य कर्म कर बंशीवट जाओ,
प्यारे कृष्ण कन्हाई।
कर कर जतन जगाइ रही मैया,
जागत नहिं नँद लाल।
गावते प्रभाती चले बटोही,
पहुँच गये कई कोस।
प्रखर भई सूर्य की किरणें,
विगलाइ गई है ओस।
कबहू शीश पै हाथ फिरावै,
कबहू चूमती भाल।
देखो कान्हा द्वारे जाय कें,
राधा तुम्हें बुलावै।
अगर रूंठ कर लौट गई वो,
फेरि बगदि नहिं आवै।
भड़भड़ाइ उठि बैठे मोहन,
समझी मैया की चाल।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Thursday 4 July 2019

दहक रहे नफरत के अंगारे

लगता है सर्वत्र आग लगी है,
दहक रहे नफरत के अंगारे।
लाल भभूका हैं सबके मुख,
आरक्त हुऐ गुस्से के मारे।
सूख गये हैं नेह कूप,
जुल्म ढा रही ईर्ष्या की धूप।
दिखता नहीं कहीँ सौहार्द,
जायँ कहाँ अपनों से हारे।
अपनों का चुक गया अपनापन,
रहने लगी सम्बन्धों में अनबन।
गला काटते अपने ही अपनों का,
दुश्मन बन गये प्राणों के प्यार।
देख किसी का उत्कर्ष हाथ मलते हैं,
स्वयं नहीं कुछ कर पाते लेकिन ईर्ष्या करते हैं।
बिना बात करते हैं नफरत,
जिनके उजले तन हैं पर मन काले।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Thursday 13 June 2019

जीवन है संग्राम

बन्धु रे जीवन है संग्राम,
निज अस्तित्व बचाने को,
लड़ना पड़ता है आठौ याम।
 कभी समाज से कभी सिद्धांत से,
कभी अपने मन की उद्भ्रान्ति से।
बीत जाता है जीवन लड़ते लड़ते,
मिलता नहीं मुकाम।
कुछ स्वस्ति वाचक समाज में,
पा जाते हैं शीर्ष ठौर ।
लेकर सहारा जाति पाँति का,
बन जाते हैं सिर मौर।
वे ही संचालन करते हैं समाज का,
पाते हैं धन और नाम।
सोच है उनकी होंगे बदनाम-
पर नाम तो होगा।
नही हो भला देश समाज का,
उनका तो होगा ।
अनाम मरने से अच्छा है,
मरना होकर बदनाम।
ऐसी मानसिकता से समाज,
कैसे उन्नति पायेगा ।
अवनत समाज के होने से,
क्या देश शीर्ष पर जाएगा ?
संसद में होती है टाँग खिंचाई,
देश की धूमिल होती है छवि अभिराम।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Sunday 7 April 2019

यह तेरी गली यह मेरी गली

यह तेरी गली यह मेरी गली,
सौ बार आएंगे जाएंगे।
लाख करेंगे कोशिशें,
पर कभी न कभी टकराएंगे।
टकराहट में होगी खनक ,
पायल की जैसे झनक।
हम नहीं करेंगे गौर,
सुनी अनसुनी कर जाएंगे।
कभी खा जायेंगे  तैश,
लाठी डंडों से होएंगे लैस। 
हम रोक लेंगे रक्त पात,
जब लोग हमें समझायेंगे।
नहीं होएंगे हम कम ज़र्फ़,
जमने नहीं देंगे रिश्तों पर बर्फ।
होली दिवाली ईद बकरीद,
मिल कर सभी मनाएंगे।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Monday 1 April 2019

मौसम सुहाना हो गया है

मौसम सुहाना हो गया है,
समाँ आशिकाना हो गया है।
जिन रास्तों पर अक्सर आते जाते थे,
उन पर चले बिना एक जमाना हो गया है।
जो अशआर बिखरे पड़े थे,
उनके मिलने पर सुन्दर तराना हो गया है।
उजड़ा दयार आपकी इनायत से,
खुशियों का खजाना हो गया है।
किसी रूंठे को मनाने की कोशिशें,
खुद को झिकाना हो गया है।
जहाँ बैठ कर तलाशते थे दिल का सकून,
वह जगह अब मनचलों का ठिकाना हो गया है।
कदम उठाते ही लोग छेकते हैं रास्ता,
अब दुश्वार मिलना मिलाना हो गया है।
कल तक न था जिसको कुछ शऊर,
रूप उसका कातिलाना हो गया है।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Sunday 24 March 2019

मैं शराब हूँ

मैं शराब हूँ,
लोग कहते हैं मैं खराब हूँ।
खराबी मुझमें नहीं,
पीने वालों की सोच में है।
छक कर पीना,
खोना होश में है।
मैं अंगूरी आसव,
घूँट दो घूँट पीने वालों को देती मज़ा।
बे हिसाब पीने वालों को,
देती सजा।
मैं उसके मन बुद्धि  पर,
कर लेती अधिकार।
पटक कर उसे किसी नाले में,
करती प्रतिकार।
मैं अपने वशी भूत पर,
बुढ़ापा आने नहीं देती।
उससे पहले ही उसे,
मौत के आगोश में दे देती।
मेरा यह कबूलनामा,
स्वीकार लीजिये।
तौबा छक कर पीने से,
यार कीजिये।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Tuesday 19 March 2019

होली खेलि रहे नन्दलाल

होली खेलि रहे नन्दलाल,
बिरज की खोरी में।
होरी खेलन बरसाने आये, 
ग्वाल बाल कान्हा लैकें आये।
भर लाये लाल गुलाल,
पीत पट झोरी में ।                     
चंद्र सखी राधा की आयी,
भरि कें गगरी जल लै आयी।
जानें घोरि लियौ रँग लाल-
कमोरी कोरी में।                        
ग्वालन घेरी वृषभानु किशोरी,
चंद्राबल की गगरी फोरी।
राधे मुख मलौ गुलाल-
श्याम नें होरी में।                       
करौ न श्याम मोसौं बरजोरी,
हा हा खाऊँ मैं करूँ चिरौरी।
मेरौ टूटो नौलख हार-
जोरा जोरी में।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
चित्र गूगल से साभार

Sunday 10 March 2019

मैं हूँ आज ग़म ज़दा

मैं हूँ आज ग़म ज़दा,
आक्रोशित होता हूँ यदा कदा।
दुश्मनों ने गहरी घात की है,
आँसुओंकी मुल्क को सौगात दी है।
बैरियों का नाश हो,
दुखी दिल से निकलती है सदा।
होता युद्ध तो करते कुछ बारे न्यारे,
छिपी घात से बिना दिखाये शौर्य-
मारे गये बेचारे।
उनकी शहादतों के गीत गाये जायेंगे सर्वदा।
शहीदों की कुर्बानियां व्यर्थ नहीं जायेंगीं,
दुश्मनों की खुशियाँ उनके रक्त संग बह जायेंगीं।
वे सो न सकेंगे चैन से,
डरता रहेगा मन सदा।
हर कोई यहाँ आक्रोशित है,
बदला लेने को संकल्पित है।
इस जनाक्रोश का क्या होगा अंजाम,
अभी तो हुई भी नहीं है इब्तदा।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Sunday 3 March 2019

अंग भभूत मली

श्री शिव शंकर संसार सार,
करते थे अपना श्रृंगार।
सँभाल कर जटाओं में गंग,
धारण कर नाग-चन्द्र।
मलने लगे भभूत,
महादेव अवधूत। 
कुछ भभूत उड़ी,
नाग की आँख में पड़ी।
नाग फुंफकार उठा,
फुसकार से चंद्र से टपकी सुधा। 
अमृत की वह बूंद ब्याध्र चर्म परचढ़ी,
जी उठा ब्याध्र जान उसमें पड़ी।
जी कर उसने लगा दी दहाड़,
सिंहनाद से गूंजा पहाड़।
मची हलचल जैसे लग गई आग, 
डरकर नन्दी गया भाग।
महादेव भोलेशंकर, 
हुए दिगम्बर।
स्वयं को इधर उधर छिपाने लगे,
जगदम्बा को देख कर लजाने लगे।
भोलेनाथ की देख कर दशा,
शैल सुता भी गईं लजा।
देख कर दिगम्बर नाथ को शरमाने लगीं,
मुँह फेर कर जगदम्बे मुस्काने लगीं।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
चित्र गूगल से साभार




Thursday 28 February 2019

फहरादो झंडा हिंदुस्तान का

नाम मिटा दो दुनियाँ के नक्शे से,
पाकिस्तान का।
उतार फैंको चाँद सितारा,
फहरादो झंडा हिंदुस्तान का।
कोई मुल्क था पाकिस्तान,
रहे न इसका कोई निशान।
आतताइयों को करो ख़त्म,
दूर करो दर्द सारे जहान का।
शहीदों की मौत का लो प्रतिकार,
कर लो पाक पर अधिकार।
बनाओ उसको एक प्रान्त, 
भारत महान का।
नहीं भावना उसकी शुद्ध ,
वह बस कर सकता है छद्म युद्ध।
सम्मुख युद्ध में वह हारेगा,
कर न सकेगा आकलन अपने नुकसान का।
शहीदों का लहू रंग लायेगा,
वह अपनी करनी पर पछतायेगा।
दुख नेस्तनाबूद करेगा उसको,
अपनों को खोये इंसान का। 
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Saturday 23 February 2019

नापाक को पाक करो

नापाक पाक को पाक करो,
गन्दा है वह साफ करो।
आतंकवाद का पोषक है,
उसको दण्डित आप करो।
करता रहता है छद्म युद्ध,
नेतृत्व वहाँ का नहीं प्रबुद्ध।
उनकी शुद्ध भावना हो जाये,
ऐसा कुछ आप करो।
विश्व मंचों पर हुई फजीहत,
हर किसी ने दी उसे नसीहत।
बन्द करो व्यर्थ का भारत विरोध,
युद्ध के कारक होने का नहीं पाप करो।
एक बार नहीं अनेक बार,
हो चुकी है कूटनीतिक हार।
कश्मीर राग का बार बार,
काहे आलाप करो।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Saturday 16 February 2019

जैसे को तैसा

कूट कूट कर भुस भर दो,
नापाक निगोड़ों में।
बिना पिटे नहीं आएगी अक्ल,
इन हराम खोरों में।
वर्षों से वे कर रहे छल छइयां,
बहुत हो गईं अब गलबहियां।
न रहो विनोदी अब मोदी,  
लतियाओ लगाओ मार इन डंगर ढोरों में।
दिखलादो हिन्दुस्तानी दम खम,
बतलादो नहीं कम हम।
इतना कूटो दर्द रहे दौड़ता उनके पोरों में।
अपनाओ जैसे को तैसा की नीति ,
वह भूल जायेगा करना अनीति।
शहादत का बदला लेने में,
रह न जाये कसर कोरों में।
जयन्ती प्रसाद शर्मा




Saturday 2 February 2019

तारे न तुम आना ज़मीं पर,

तारे न तुम आना ज़मीं पर,
यहाँ बहुत दुश्वारियां हैं।
कदम कदम पर धोखे हैं,
कदम कदम पर मक्कारियां हैं।
यह मतलब की दुनियाँ हैं,
बिना मतलब कोई नहीं जानता।
रोज मिलते हैं मगर,
कोई नहीं पहचानता।
मतलब के हैं रिश्ते नाते,
मतलब की ही यारियां हैं।
भाईचारे की यहाँ कमी है,
सब आपस में डरे हुए हैं।
नहीं दिलों में है अपनापन,
सब नफरत से भरे हुए हैं।
होती है नफरत की खेती,
यहां नफरत की ही क्यारियां हैं।
कोई नहीं करता,
समाज को जोड़ने की कोशिश।
हर कोई करता है,
दिलों को तोड़ने की कोशिश।
नेता फैलाते हैं भ्रम जाल,
उनमें बड़ी अय्यारियाँ हैं।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Friday 25 January 2019

मेरा भारत देश!

मेरा भारत देश!
सुजल,सुफल,
सुखद परिवेश।
यहाँ गंगा यमुना बहतीं अविरल,
निर्मल,शीतल पवित्र इनका जल।
रहते मनुष्य निर्लिप्त,
वातावरण में गूंजते-
गीता के उपदेश।
मनो में धर्म का प्रभाव,
उपजाता है बन्धुत्व भाव।
रहती है मिल कर रहने की चाह,
दिया विभूतियों ने सदा-
शान्ति का सन्देश।
धर्म भीरुता बाँधे रखती है,
निरुत्साहित पापों से करती है।
नहीं करने देती अपकर्म,
सम्बल देते हैं-
महापुरुषों के निर्देश।
जय भारत
जयन्ती प्रसाद शर्मा




Friday 18 January 2019

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी!
तेरी ज़िन्दगी
मेरी ज़िन्दगी
इसकी ज़िन्दगी
उसकी ज़िन्दगी
हम सबकी ज़िन्दगी।
रोती है ज़िन्दगी
रुलाती है ज़िन्दगी
हँसती है ज़िन्दगी
हँसाती है ज़िन्दगी
सबकी मुस्कराती है ज़िन्दगी।
सकाम होती है ज़िन्दगी
निष्काम होती है ज़िन्दगी
बदनाम होती है ज़िन्दगी
गुमनाम होती है ज़िन्दगी
अंजाम ढोती है ज़िन्दगी।
चलती है ज़िन्दगी
दौड़ती हैं ज़िन्दगी
घिसटती है ज़िन्दगी
सिमटती है ज़िन्दगी
थमती है पूर्ण विराम पाती है ज़िन्दगी।
यही चिरंतन सत्य है।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Saturday 12 January 2019

जाड़े की एक सुबह

कुहासे की चिलमन से झाँकते सूर्य ने
भेज दीं कुछ किरणें भूमि पर
वे लगीं बड़ी भली
सर्द शरीरों में पड़ गई जान
खुल गए अंग
उठी मन में उमंग
गीत लेने लगे अंगड़ाई
पत्तों पर पड़ी ओस
हो गई विगलित
बहने लगी बन कर जल
नहा उठे वृक्ष
खिल गईं कलियाँ
निखर गए पुष्प
उपवन हो गये मोहक
सर्दी से त्रस्त परिंदे
छोड़ कर नीड़ चहचहाने लगे
समाप्त हो गई नीरवता
पीली कमजोर धूप पसराने लगी
बदन सहलाने लगी
सर्वत्र बिखर गया हेम
जड़जड़ाते लोग
पूंछते कुशल क्षेम
जग जग पड़ा
संसार चल पड़ा
धन्यवाद सूर्यदेव।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

चित्र गूगल से साभार

Sunday 6 January 2019

उलझन

बोला गुरू से शिष्य,
मेरी उलझन सुलझाइए।
अंतरंग परिचय मेरा,
मुझसे कराइये।
मैं मन हूँ या तन हूँ,
नूतन हूँ पुरातन हूँ।
मैं अपने को समझ न सका,
मैं कौन हूँ बताइये।
मैं भोगी हूँ या भोग हूँ,
योगी हूँ या योग हूँ।
मैं कैसे स्वयं को परिभाषित  करूं,
मुझे समझाइये।
इस वासना के संसार में मैं भटक गया हूँ,
हो गया हूँ दिशा भूल और अटक गया हूँ।
कन्टकों में उलझा जीवन,
मुझको बचाइये।
नहीं मैं इधर रहा नहीं उधर रहा,
त्रिशंकु सा अधर में लटका रहा।
इस दुसह्य स्थिति से निकलने  को,
दिशा दिखाइये।
जयन्ती प्रसाद शर्मा