Saturday 29 September 2018

पावस की अमावस की रात

पावस की अमावस की रात 
किसी पापी के मन सी काली                                
घोर डरावनी 
गंभीर मेघ गर्जन                                                                
दामिनी की चमक कर देती है 
विरहणी को त्रस्त                                              
बादलों की गड़गड़ाहट से 
चपल चपला की कड़कड़ाहट से                                
वह चिहुक उठती है 
हो जाती है आशंकित  
बैरिन बीजुरी गिर न जाये नशे मन पर                            
डर कर सिमट जाती है 
लग जाना चाहती है प्रिय के सीने से
बरखा की शीतल बूंदें  
विरह से तपते शरीर पर                                               
लगतीं हैं तेजाब की फुहार सी 
उसकी बढ़ जाती है जलन                                 
वह कर उठती है सीत्कार 
अरे निर्दयी तुम्हें अभी परदेश जाना था                     
क्या नहीं लौटकर आना था 
देखकर मौसम की दुश्वारी
सोचकर क्या हालत होगी हमारी                                    
ओ संगदिल बेदर्दी सनम। 
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Friday 21 September 2018

इंसानियत

मैं गलियों में गलियारों में इंसानियत ढूंढता रहा,
मंदिरों में मस्जिदों में उसका पता पूँछता  रहा।
वह मिली तो मिली सर्वहारों के बीच,
जिनका जीवन अभावों से जूझता रहा।
वे अपनी पीड़ा से दुखी रहते हैं,
अंग अंग उनके टीसते रहते हैं।
पूँछते हैं एक दूसरे की कुशल क्षेम,
नहीं चुराते जी दुख में संग रहते हैं।
वे लड़ते हैं झगड़ते हैं रूठते हैं,
इंसानियत के रिश्ते नहीं टूटते हैं।
आपदा में मिल जाते हैं हाथ,
मिले हाथ नहीं छूटते हैं।
सुविधाओं अय्याशियों में पले लोग,
कत्ल इन्सानियत का करते हैं।
करते हैं वरिष्ठों से मार पीट,
दुष्कर्म नारियों संग करते हैं।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Thursday 13 September 2018

गणेश वन्दना

जय गणेश गिरिजा नन्दन, करते हैं तेरा वंदन................. जय गणेश.....।

शंकर सुवन भवानी नन्दन-
हम शरण तुम्हारी आये हैं।
पान, फूल, मेवा, मिष्ठान-
हम पूजा को लाये हैं।
सिंदूर का मस्तक पर तिलक लगा कर-
करते हैं तेरा अभिनन्दन.................जय गणेश.....।
मूषिकारुढ़ प्रभु कृपा करें,
भक्तों का संताप हरें।
अशुभ-अलाभ को करें दूर,
सबका मंगल आप करें।
भक्तिभाव से स्मरण तुम्हारा-
हम कर रहे सभी है भय भंजन।.......जय गणेश.....।
हे वक्रतुण्ड हे महाकाय,
दीनों के प्रभु करें सहाय।
अति प्रचंड है तेज तुम्हारा-
पटक पतितों का दें जलाय।
करें अभय संतप्त जनों को-
जो कर रहे दुखी हो कर क्रंदन..........जय गणेश.....।
अष्टसिद्धिनव निधि के दाता,
हों प्रसन्न हे बुद्धि प्रदाता।
द्दार तुम्हारे जो कोई आता,
खाली हाथ न कोई जाता।
स्वीकार करें प्रभु नमन मेरा-
हे गजमुख हे शिवनन्दन.................जय गणेश.....।
जयन्ती प्रसाद शर्मा






Saturday 8 September 2018

सखी री मैं उनकी दिवानी

सखी री मैं तो उनकी दिवानी,
नहीं आवै उन बिन चैन।
मन तड़पत घायल पंछी सौ,
विरह करै बेचैन.................सखी री...........।
                    बानि पड़ी ऐसी अंखियन को,
                    प्रतिक्षण देखन चाहत उनको।
                    नहीं दिखाई दें वे पलभर,
                    लगें बरसने नैन....सखी री...........।
यादें उनकी जब जब आवें,
उठे हूक सी मन घबरावै।
कहा करूँ कुछ समझ न पाऊँ,
बीते जागते रैन........................सखी री...........।  
                    पड़े फफोले विरहानल के,
                    घाव टीसते हैं अब मन के।
                    पीर ह्रदय की सही न जावै,
                    लगी बहुत दुख देन.......सखी री...........।  

जयन्ती प्रसाद शर्मा