Wednesday 29 January 2020

बसंत गीत

आ गये ऋतुराज बसंत।
गत शिशिर हुआ, विगत हेमन्त…………आ गये .....।
मौसम हो गया खुशगवार,
बहने लगी सुरभित बयार,
कोयल कूक रही मतवाली,
हुई पल्लवित डाली डाली।
गुनगुनी धुप से खिल गये तनमन, हुआ दुखों का अन्त…आ गये...।
पीले फूल खिले सरसों के,
शस्य श्यामला हो गई धरा।
मानो बसंत की आगौनी को,
प्रकृति ने श्रृंगार करा।
हर मन में उत्साह भर गया-
जवान हो गई मन की उमंग…………आ गये.............................. 
कामदेव ने काम किया,
पुष्प शर संधान किया।
फूलों की मोहक सुगंध से-
सम्मोहित संसार किया।
सब प्राणी मदमस्त हो गये नस नस में घुस गया अनंग…आ गये..।
नेह रस की हो रही वृष्टि,
हुई सिक्त सम्पूर्ण सृष्टि।
रति पति ने अधिपत्य जमाया,
अंग अंग में मदन समाया।
कुंजन मे भ्रंग कर रहे गुंजन, आनन्द छाया दिग दिगंत…आ गये .।
जयन्ती प्रसाद शर्मा




Saturday 25 January 2020

देश के रक्षक

इधर देखो उधर देखो,
हो नहीं जाये हादसा, 
तुम हर तरफ देखो।
देखो पृथ्वी देखो आकाश, 
हर ओर कीजिए दृष्टि पात। 
कर दीजिये अबिलम्ब वार,
देश का दुश्मन अगर देखो।
ओ वीर सैनिक देश के रक्षक, 
कर न दे घात कोई आस्तीन का तक्षक।
कर दो तुरंत नेस्तनाबूद, 
कुछ संदिग्ध अगर देखो। 
हो नहीं जाना तुम हैरान, 
नहीं हो जाना परेशान। 
दोस्ती की आड़ में,
दुश्मनी अगर देखो। 
तुम रहना सतर्क और सावधान,
तिरंगे का हो नहीं जाये अपमान।
सीधा कर देना देश का झंडा, 
कभी झुका अगर देखो।

जयन्ती प्रसाद शर्मा "दादू "
चित्र गूगल  साभार 

Saturday 4 January 2020

नहीं कोई शरम

मुझे अपने बारे में नहीं कोई भरम,
सत्य स्वीकारने में नहीं कोई शरम।
सुगठित नहीं हैं मेरे विचार,
मैं भावों का पसरट्टा हूँ।
मैं करता हूँ सम्मोहित हूँ मोहन,
आपकी भावनाओं का करता हूँ दोहन।
रगड़ रगड़ कर करता हूँ समरस,
मैं पत्थर का सिल बट्टा हूँ।
सब रहते हैं मुझसे निराश,
पूरी नहीं कर पाता किसी की आस।
ऊँचे पेड़ पर लगा हुआ,
मैं अलभ्य, फल खट्टा हूँ।
हर कोई देता मुझको नकार,
कोई नहीं करता मुझको स्वीकार।
मैं लोगों की नज़रों में,
झांसा हूँ, झपट्टा हूँ।

जयन्ती प्रसाद शर्मा