Saturday 12 January 2019

जाड़े की एक सुबह

कुहासे की चिलमन से झाँकते सूर्य ने
भेज दीं कुछ किरणें भूमि पर
वे लगीं बड़ी भली
सर्द शरीरों में पड़ गई जान
खुल गए अंग
उठी मन में उमंग
गीत लेने लगे अंगड़ाई
पत्तों पर पड़ी ओस
हो गई विगलित
बहने लगी बन कर जल
नहा उठे वृक्ष
खिल गईं कलियाँ
निखर गए पुष्प
उपवन हो गये मोहक
सर्दी से त्रस्त परिंदे
छोड़ कर नीड़ चहचहाने लगे
समाप्त हो गई नीरवता
पीली कमजोर धूप पसराने लगी
बदन सहलाने लगी
सर्वत्र बिखर गया हेम
जड़जड़ाते लोग
पूंछते कुशल क्षेम
जग जग पड़ा
संसार चल पड़ा
धन्यवाद सूर्यदेव।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

चित्र गूगल से साभार

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