Saturday, 20 July 2019

घड़ियां इंतज़ार की

घड़ियां इंतज़ार की
लगती हैं पहाड़ सी
पलकें होती हैं बोझिल
आँखें सुर्खरू
जैसे तप्त हों बुखार से।
मनहो जाता है व्याकुल
और तन आकुल
हर आहट पर चौंक उठती है
आ गये सनम।
आवारा बयार का झौंका होगा
अथवा कोई श्वान
खड़का गया दरवाजे के
किवाड़।
न देख कर प्रिय को हुई मायूस
खो गया दिल का चैन
बढ़ गई बेकरारी
पड़ गई हो कर निढाल।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

1 comment:

Amit Rathod said...

सर आप बहोत ही अच्छी कहानिया लिखते है मुझे पढ़ कर मजा आ गया एक बार आप मेरा ब्लॉग भी देखिये आपको मेरा ब्लॉग पक्का पसंद आएगा|

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