घड़ियां इंतज़ार की
लगती हैं पहाड़ सी
पलकें होती हैं बोझिल
आँखें सुर्खरू
जैसे तप्त हों बुखार से।
मनहो जाता है व्याकुल
और तन आकुल
हर आहट पर चौंक उठती है
आ गये सनम।
आवारा बयार का झौंका होगा
अथवा कोई श्वान
खड़का गया दरवाजे के
किवाड़।
न देख कर प्रिय को हुई मायूस
खो गया दिल का चैन
बढ़ गई बेकरारी
पड़ गई हो कर निढाल।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
लगती हैं पहाड़ सी
पलकें होती हैं बोझिल
आँखें सुर्खरू
जैसे तप्त हों बुखार से।
मनहो जाता है व्याकुल
और तन आकुल
हर आहट पर चौंक उठती है
आ गये सनम।
आवारा बयार का झौंका होगा
अथवा कोई श्वान
खड़का गया दरवाजे के
किवाड़।
न देख कर प्रिय को हुई मायूस
खो गया दिल का चैन
बढ़ गई बेकरारी
पड़ गई हो कर निढाल।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
1 comment:
सर आप बहोत ही अच्छी कहानिया लिखते है मुझे पढ़ कर मजा आ गया एक बार आप मेरा ब्लॉग भी देखिये आपको मेरा ब्लॉग पक्का पसंद आएगा|
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