जग दुख का आगार है नहीं रोइये रोज।
रोना धोना छोड़ कर सुख के कारक खोज।।
सुख के कारक खोज लगा लत नेक काम की।
कर दुखियों की मदद फिकर नहीं कर इनाम की।।
परमारथ की लगन जब तुम्हें जायेगी लग।
भूलोगे निज कष्ट लगेगा अति सुंदर जग।।
पोथी पढ़कर फैंक दी हुआ न कुछ भी ज्ञान।
नहीं किया चिंतन मनन सोये चादर तान।।
सोये चादर तान नींद में सभी भुलाने।
नहि मिल पाया ज्ञान अकिभी तक रहे अयाने।।
करें निरर्थक तर्क दलीलें देते थोथी।
दिया न कोई ध्यान फैंक दी पढ़ कर पोथी।।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
रोना धोना छोड़ कर सुख के कारक खोज।।
सुख के कारक खोज लगा लत नेक काम की।
कर दुखियों की मदद फिकर नहीं कर इनाम की।।
परमारथ की लगन जब तुम्हें जायेगी लग।
भूलोगे निज कष्ट लगेगा अति सुंदर जग।।
पोथी पढ़कर फैंक दी हुआ न कुछ भी ज्ञान।
नहीं किया चिंतन मनन सोये चादर तान।।
सोये चादर तान नींद में सभी भुलाने।
नहि मिल पाया ज्ञान अकिभी तक रहे अयाने।।
करें निरर्थक तर्क दलीलें देते थोथी।
दिया न कोई ध्यान फैंक दी पढ़ कर पोथी।।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
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