Sunday, 3 March 2019

अंग भभूत मली

श्री शिव शंकर संसार सार,
करते थे अपना श्रृंगार।
सँभाल कर जटाओं में गंग,
धारण कर नाग-चन्द्र।
मलने लगे भभूत,
महादेव अवधूत। 
कुछ भभूत उड़ी,
नाग की आँख में पड़ी।
नाग फुंफकार उठा,
फुसकार से चंद्र से टपकी सुधा। 
अमृत की वह बूंद ब्याध्र चर्म परचढ़ी,
जी उठा ब्याध्र जान उसमें पड़ी।
जी कर उसने लगा दी दहाड़,
सिंहनाद से गूंजा पहाड़।
मची हलचल जैसे लग गई आग, 
डरकर नन्दी गया भाग।
महादेव भोलेशंकर, 
हुए दिगम्बर।
स्वयं को इधर उधर छिपाने लगे,
जगदम्बा को देख कर लजाने लगे।
भोलेनाथ की देख कर दशा,
शैल सुता भी गईं लजा।
देख कर दिगम्बर नाथ को शरमाने लगीं,
मुँह फेर कर जगदम्बे मुस्काने लगीं।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
चित्र गूगल से साभार




8 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05-03-2019) को "पथरीला पथ अपनाया है" (चर्चा अंक-3265) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

विश्वमोहन said...

अद्भुत!क्या मोहक लौकिक रंग में रंगा है इस औघड़ मस्त महादेव को! विद्यापति के उस वर्णन की याद आ गयी जब गौरा अपने मायके की शिकायत सुन महादेव पर विफर उठती है और कस के खबर लेटी हैं उनकी. आपने तो लौकिक घटना क्रम का ताना बाना बुनकर अप्रतिम श्रृंगार की अलौकिक छटा बिखेर दी. नमन आपकी लेखनी को. शिवरात्री की शुभकामनाएं!!!!

विश्वमोहन said...

अद्भुत! क्या मोहक लौकिक रंग में रंगा है इस औघड़ मस्त महादेव को आपने! विद्यापति के उस वर्णन की याद आ गयी जब गौरा अपने मायके की शिकायत सुन महादेव पर बिफर उठती है और कस के खबर लेती हैं उनकी. आपने तो लौकिक घटना क्रम का ताना बाना बुनकर अप्रतिम श्रृंगार की अलौकिक छटा बिखेर दी. नमन आपकी लेखनी को. शिवरात्री की शुभकामनाएं!!!!

Pammi singh'tripti' said...

आपकी लिखी रचना आज ," पाँच लिंकों का आनंद में " बुधवार 6 मार्च 2019 को साझा की गई है..
http://halchalwith5links.blogspot.in/
पर आप भी आइएगा..धन्यवाद।

Pammi singh'tripti' said...

आपकी लिखी रचना आज ," पाँच लिंकों का आनंद में " बुधवार 6 मार्च 2019 को साझा की गई है..
http://halchalwith5links.blogspot.in/
पर आप भी आइएगा..धन्यवाद।

मन की वीणा said...

बेहतरीन प्रस्तुति।

विश्वमोहन said...

वाह! अप्रतिम। विद्यापति की उस कविता का अलंकार परोस दिया आपने जिसमें गौरा शंकर की जबरदस्त खबर लेती है जब शंकर उनके मायके पर आक्षेप कर देते हैं।

Kamini Sinha said...

शिव के शृंगार का अद्भुत चित्रण ,बहुत सुंदर रचना ,सादर नमन