Saturday, 26 October 2019

ब्रज धाम

अति पावन माँटी है ब्रज की,
तिलक लगाऔ समझि कें चन्दन।
श्रद्धा सौं भैंटहु ब्रजवासिन,
करत रहे केलि इन सँग नँद नंदन।

गैया पूज्य हैं जमुना पूज्य है,
पूज्य है सिगरी ब्रज भूमी।
यहाँ धेनु चरावत घूमे कान्हा,
उन सँग राधा हू घूमी।

अति पवित्र है धाम वृन्दावन,
यहाँ रास रचाते रहे कन्हैया।
ग्वाल-बाल सँग धेनु चराते,
वेणु बजाते कदंब की छैयाँ।

बड़े भाग हैं उन जन के,
जिन दर्शन ब्रज धाम कौ कीन्हौं।
मानुष हैवे कौ फल पायौ,
जनम सफल अपनौं करि लीन्हौं।
जयन्ती प्रसाद शर्मा



Friday, 18 October 2019

खुशियों के पल

चाँद-चाँदनी की अनुपस्थिति में,
तारे खिलखिला रहे हैं।
कभी कभी अमावस भी होनी चाहिये।

बिलों से निकल कर चूहे-
कर रहे हैं धमाचौकड़ी।
आज पूसी मौंसी घर पर नहीं है,
आओ कुछ देर हँसलें खेल लें।

मित्रो, आज बॉस नहीं हैं,
चलो रमी खेल लेते हैं।

आज अवकाश है।
भूल कर चिंता फिकर-
पिकनिक पर चलें।

इस दुर्गंधमय वातावरण में,
अय गुलाब तू क्यों महक रहा है।
चल समेट ले अपनी गंध,
तुझे यहाँ कौन रहने देगा।

छोटी छोटी खुशियों के पलों में-
चहक लेते हैं।
क्या पता ये भी फिर,
मिलें न मिलें।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Saturday, 12 October 2019

प्यार की प्यास,

सबको प्यार की प्यास,
मुझको भी प्यार की प्यास
दूर दूर सब रहते मुझसे,
पड़ा अकेला बातें करता खुद से।
रहूँ बुलाता इसको-उसको,
कोई नहीं आता पास।
लगता है अब जाने की हुई उमर,
मैं उपेक्षित हुआ बदली लोगों की नजर।
अपनों के बेगानेपन से,
टूटी जीवन की आस।
मैं चाहता हूँ कोई मुझसे प्यार करे,
हँस करके बातें दो चार करे।
कन्नी काट निकल जाते हैं,
मेरे खासम ख़ास।
मैं क्यों जीवन का उत्सर्ग करूं,
क्यों नहीं अपने अतीत पर गर्व करूँ।
मेरी गर्वोक्त का मजाक बना कर,
उड़ाते लोग उपहास
जयंती प्रसाद शर्मा

Saturday, 5 October 2019

माँ की महिमा अपरम्पार

बंधु मेरे नवरातों में,
जागा करिये रातों में।
माँ की भक्ति में रम जाओ,
जाया करिये जगरातों में।

माँ की महिमा अपरम्पार,
करती भक्तों का बेड़ा पार।
बिन माँगे सब कुछ पाओगे,
जाकर देखो उसके द्वार।

माँ का भव्य सजा दरबार,
करिये दर्शन, करिये जयकार।
माता तुमको बुला रही है,
राह तुम्हारी रही निहार।

भक्तो माँ से लगन लगाओ,
भक्ति में उसकी तुम रम जाओ।
जय माता दी कहते कहते,
मंदिर की सीढ़ी चढ़ते जाओ।

जयन्ती प्रसाद शर्मा