अपनी सघनता और विशालता से इतराये वट वृक्ष ने
देखते हुये नफरत से
उतार दी अपनी कुछ लटें भूमि में
जानने को जड़ों की औकात
वहाँ फैला था उसकी ही जड़ों का जाल
उसी की सघनता सा विशाल क्षेत्र में
वे जड़ें तो थीं पर थीं पूर्ण चैतन्य
वे जकड़ी हुई थीं भूमि से और
कर रही थीं प्रदान सम्बल उस वृक्ष को
सोख कर भूमि से पोषक तत्व
पहुँचा रहीं थी ऊर्ध्व भाग को
बनाये रखने को उसे हरा-भरा
वे लटें भी बन गई थीं जड़ें
गहरे समा गई थीं भूमि में
वे भी खींच कर जमीन से नमी व पोषक तत्व
पहुँचा रहीं थीं अपने बाह्य भाग को
जो बन गये थे स्वतंत्र वृक्ष
पता नहीं उस वृक्ष को
अभी भी नहीं समझ आयी थी जड़ों की औकात
जयन्ती प्रसाद शर्मा
देखते हुये नफरत से
उतार दी अपनी कुछ लटें भूमि में
जानने को जड़ों की औकात
वहाँ फैला था उसकी ही जड़ों का जाल
उसी की सघनता सा विशाल क्षेत्र में
वे जड़ें तो थीं पर थीं पूर्ण चैतन्य
वे जकड़ी हुई थीं भूमि से और
कर रही थीं प्रदान सम्बल उस वृक्ष को
सोख कर भूमि से पोषक तत्व
पहुँचा रहीं थी ऊर्ध्व भाग को
बनाये रखने को उसे हरा-भरा
वे लटें भी बन गई थीं जड़ें
गहरे समा गई थीं भूमि में
वे भी खींच कर जमीन से नमी व पोषक तत्व
पहुँचा रहीं थीं अपने बाह्य भाग को
जो बन गये थे स्वतंत्र वृक्ष
पता नहीं उस वृक्ष को
अभी भी नहीं समझ आयी थी जड़ों की औकात
जयन्ती प्रसाद शर्मा
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