कृष्ण ने ग्वालिन घेरी दगड़े में
बहुत कियौ बदनाम मोहि-
बहुत कियौ बदनाम मोहि-
ब्रज मंडल सिगरे में।
घर घर दीन्हीं नंद दुहाई,
माखन चोर है कृष्ण कन्हाई।
नहीं तोसे कुछ कम है गैंयाँ
ग्वालिन खरिक अपने में............कृष्ण ने...........।
ले गई घर मोहि लिवाइ के,
माखन मिश्री मोहि खवाइ के।
बरबस ही नवनीत कटोरा,
दियौ हाथ हमरे में............कृष्ण ने........... ।
क्या ग्वालिन तेरे मन आई,
काहे मोसों रार बढ़ाई।
मेरे सिवाय काम नहीं आवै,
कोई तेरे बिगड़े में............कृष्ण ने........... ।
हा-हा खाऊँ पडूँ तेरी पइयाँ
करौ क्षमा मोहि कृष्ण कन्हैया।
मैं दर्शन की अभिलाषी बौराई,
कान्हा प्रेम तुम्हरे में............कृष्ण ने........... ।
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