बड़ा जुल्म ढाया पड़ गये थे-
संकट में प्राण हमारे।
गर्मी से रक्षा करने का,
आभार किया था।
मेवा मिष्ठान आदि से,
सत्कार किया था।
तेरे स्वागत को रंग रोगन से-
अपने घर द्दार संवारे----------------- जाड़े अब---।
गुन गुनी धूप में हम-
बदन सेका करते थे।
चाय पीते थे बतियाते थे,
रिसाले देखा करते थे।
अपनी सुहानी ठंडक से-
तुम लगते थे बहुत ही प्यारे---------जाड़े अब---।
धीरे-धीरे तुम,
अधिकार जमाने लगे।
अपनी तीव्रता से,
लोगों को सताने लगे।
गर्म कपड़ों से रहते थे लदे-
काँपते थे हाड़ हमारे----------------- जाड़े अब---।
तुम उग्र रूप दिख लाने लगे,
बड़े बूढ़ों को ठिकाने लगाने लगे।
जमाने लगे जमीं आसमां,
सब आजिज तुम से आने लगे।
अब बसंत के आने से,
तेवर ढीले पड़े तुम्हारे---------------जाड़े अब---।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
चित्र गूगल से साभार
संकट में प्राण हमारे।
गर्मी से रक्षा करने का,
आभार किया था।
मेवा मिष्ठान आदि से,
सत्कार किया था।
तेरे स्वागत को रंग रोगन से-
अपने घर द्दार संवारे----------------- जाड़े अब---।
गुन गुनी धूप में हम-
बदन सेका करते थे।
चाय पीते थे बतियाते थे,
रिसाले देखा करते थे।
अपनी सुहानी ठंडक से-
तुम लगते थे बहुत ही प्यारे---------जाड़े अब---।
धीरे-धीरे तुम,
अधिकार जमाने लगे।
अपनी तीव्रता से,
लोगों को सताने लगे।
गर्म कपड़ों से रहते थे लदे-
काँपते थे हाड़ हमारे----------------- जाड़े अब---।
तुम उग्र रूप दिख लाने लगे,
बड़े बूढ़ों को ठिकाने लगाने लगे।
जमाने लगे जमीं आसमां,
सब आजिज तुम से आने लगे।
अब बसंत के आने से,
तेवर ढीले पड़े तुम्हारे---------------जाड़े अब---।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
चित्र गूगल से साभार
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