Friday, 31 August 2018

मैं अनुरागी श्री राधा कौ

मैं अनुरागी श्री राधा कौ!
नाम लेत बन जाती बिगड़ी,
महा मंत्र भव बाधा कौ•••।
राधा प्रसन्न, मैं प्रसन्न,
बात नही है यह प्रच्छन्न।
कर न सकूँगो मैं अनदेखी,
उनके भक्तों की ब्याधा कौ•••।
बिन राधा के श्याम अधूरौ,
कर न सकूं कोई काम मैं पूरौ।
वे हैं मेरी कर्म शक्ति,
मैं उन बिन प्रतीक आधा कौ•••।
मेरी पूरक बृषभान किशोरी,
राधे श्याम की अविचल जोड़ी।
कांतिमान हूँ उनसे ही मैं,
आभारी उनकी आभा कौ•••।
जयन्ती प्रसाद शर्मा



Sunday, 26 August 2018

मधुकर मत कर अंधेर

मधुकर मत कर अंधेर। 
अभी कली है नहीं खिली है,
नहीं कर उनसे छेड़।
वे अबोध हैं तू निर्बोध है,
प्रीत की रीत का नहीं प्रबोध है।
समझेंगी वे चलन प्रेम का,
रे भ्रमर देर सवेर.....................मधुकर मत........।
रह भँवरे तू कुछ दिन चुप,
खिलने दे कलियाँ बनने दे पुष्प।
चढ़ने दे उन पर मौसम के रंग,
मादक बनते नहीं लगेगी देर........मधुकर मत........।
खिल कर कलियाँ जब पुहुप बनेंगी,
उपवन को मोहक कर देंगी।
उड़ेगा पराग होगी सुरभित बयार,
चाहे फिर मकरंद चुराना एक नहीं दस बेर...मधुकर मत........।  
तू हरजाई है वे जानती हैं,
तेरी फितरत पहचानती हैं।
नहीं रहेगा उनसे बँधकर-
लेकर रस उड़ने में होगी नहीं अबेर.........मधुकर मत........।  

जयन्ती  प्रसाद शर्मा  
           

Sunday, 12 August 2018

जय शिव शंकर

जय शिव शंकर बम भोले।
पी गये गरल,
जैसे पेय तरल।
न बनाया मुंह,
न कुछ बोले ......जय शिव शंकर।
थी लोक कल्याण की भावना,
सबके प्रति थी सद्द्भावना।
हुआ कंठ नीलाभ,
भड़कने लगे आँख से शोले ......जय शिव शंकर।
चन्द्र कला सिर पर धरी उसकी शीतलता से विष ज्वाल हरी।
हुये शान्त उमाकांत,
सामान्य हुए हौले हौले ......जय शिव शंकर।
पसंद अपनी अपनी अपना खयाल,
लटकाये रहते कंठ व्याल।
आक धतुरा है अति प्रिय,
सटकते रहते भंग के गोले .....जय शिव शंकर।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Monday, 6 August 2018

ढाक के तीन पात

उसकी बात बात होती है,
मेरी बात गधे की लात।
लग जाये तो ठीक है वरना,
उसकी नहीं कोई बिसात।
                मैं जब तक प्रश्न समझ पाता हूँ,
                वह उत्तर दे देती है।
                मैं जब तक विषय में उतराता हूँ,
                वह समाधान दे देती है।
देख कर उसकी तत्परता,
मैं रह जाता हूँ अवाक्............................लग जाये तो.....................।
                वह नहीं जाती शब्दों की गहराई में,
                सीधा मतलब ले लेती है।
                जलपान कराने की कहने पर,
                लोटा भर कर जल दे देती है।
मैं प्रशिक्षु सा लगता हूँ,
वह लगती है पूर्ण निष्णात......................लग जाये तो....................।
                मेरे समझाने पर वह,
                मेरी क्लास ले लेती है।
                मंहगाई का कुछ करो ख्याल,
                मुझे उपालम्भ दे देती है।
इतना समझाती हूँ फिर भी-
रहते हो ढाक के तीन पात........................लग जाये तो....................।

जयन्ती प्रसाद शर्मा