Sunday 26 August 2018

मधुकर मत कर अंधेर

मधुकर मत कर अंधेर। 
अभी कली है नहीं खिली है,
नहीं कर उनसे छेड़।
वे अबोध हैं तू निर्बोध है,
प्रीत की रीत का नहीं प्रबोध है।
समझेंगी वे चलन प्रेम का,
रे भ्रमर देर सवेर.....................मधुकर मत........।
रह भँवरे तू कुछ दिन चुप,
खिलने दे कलियाँ बनने दे पुष्प।
चढ़ने दे उन पर मौसम के रंग,
मादक बनते नहीं लगेगी देर........मधुकर मत........।
खिल कर कलियाँ जब पुहुप बनेंगी,
उपवन को मोहक कर देंगी।
उड़ेगा पराग होगी सुरभित बयार,
चाहे फिर मकरंद चुराना एक नहीं दस बेर...मधुकर मत........।  
तू हरजाई है वे जानती हैं,
तेरी फितरत पहचानती हैं।
नहीं रहेगा उनसे बँधकर-
लेकर रस उड़ने में होगी नहीं अबेर.........मधुकर मत........।  

जयन्ती  प्रसाद शर्मा  
           

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