उसकी बात बात होती है,
मेरी बात गधे की लात।
लग जाये तो ठीक है वरना,
उसकी नहीं कोई बिसात।
मैं जब तक प्रश्न समझ पाता हूँ,
वह उत्तर दे देती है।
मैं जब तक विषय में उतराता हूँ,
वह समाधान दे देती है।
देख कर उसकी तत्परता,
मैं रह जाता हूँ अवाक्............................लग जाये तो.....................।
वह नहीं जाती शब्दों की गहराई में,
सीधा मतलब ले लेती है।
जलपान कराने की कहने पर,
लोटा भर कर जल दे देती है।
मैं प्रशिक्षु सा लगता हूँ,
वह लगती है पूर्ण निष्णात......................लग जाये तो....................।
मेरे समझाने पर वह,
मेरी क्लास ले लेती है।
मंहगाई का कुछ करो ख्याल,
मुझे उपालम्भ दे देती है।
इतना समझाती हूँ फिर भी-
रहते हो ढाक के तीन पात........................लग जाये तो....................।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
मेरी बात गधे की लात।
लग जाये तो ठीक है वरना,
उसकी नहीं कोई बिसात।
मैं जब तक प्रश्न समझ पाता हूँ,
वह उत्तर दे देती है।
मैं जब तक विषय में उतराता हूँ,
वह समाधान दे देती है।
देख कर उसकी तत्परता,
मैं रह जाता हूँ अवाक्............................लग जाये तो.....................।
वह नहीं जाती शब्दों की गहराई में,
सीधा मतलब ले लेती है।
जलपान कराने की कहने पर,
लोटा भर कर जल दे देती है।
मैं प्रशिक्षु सा लगता हूँ,
वह लगती है पूर्ण निष्णात......................लग जाये तो....................।
मेरे समझाने पर वह,
मेरी क्लास ले लेती है।
मंहगाई का कुछ करो ख्याल,
मुझे उपालम्भ दे देती है।
इतना समझाती हूँ फिर भी-
रहते हो ढाक के तीन पात........................लग जाये तो....................।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
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