भोर भई अब जागो लाल!
मुँह उठाय रँभाइ रही गैया,
बाट देखि रहे ग्वाल।
उदय भये रवि किरण पसारीं,
अम्बर से उतराईं।
चूँ चूँ करती चुगने दाना,
चिड़ियाँ आँगन में आईं।
काहे लाला अब तक सोवै,
है रहे सब बेहाल।
उठो लाल मुँह हाथ पखारो,
मैं लोटा भर जल लाई।
नित्य कर्म कर बंशीवट जाओ,
प्यारे कृष्ण कन्हाई।
कर कर जतन जगाइ रही मैया,
जागत नहिं नँद लाल।
गावते प्रभाती चले बटोही,
पहुँच गये कई कोस।
प्रखर भई सूर्य की किरणें,
विगलाइ गई है ओस।
कबहू शीश पै हाथ फिरावै,
कबहू चूमती भाल।
देखो कान्हा द्वारे जाय कें,
राधा तुम्हें बुलावै।
अगर रूंठ कर लौट गई वो,
फेरि बगदि नहिं आवै।
भड़भड़ाइ उठि बैठे मोहन,
समझी मैया की चाल।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
मुँह उठाय रँभाइ रही गैया,
बाट देखि रहे ग्वाल।
उदय भये रवि किरण पसारीं,
अम्बर से उतराईं।
चूँ चूँ करती चुगने दाना,
चिड़ियाँ आँगन में आईं।
काहे लाला अब तक सोवै,
है रहे सब बेहाल।
उठो लाल मुँह हाथ पखारो,
मैं लोटा भर जल लाई।
नित्य कर्म कर बंशीवट जाओ,
प्यारे कृष्ण कन्हाई।
कर कर जतन जगाइ रही मैया,
जागत नहिं नँद लाल।
गावते प्रभाती चले बटोही,
पहुँच गये कई कोस।
प्रखर भई सूर्य की किरणें,
विगलाइ गई है ओस।
कबहू शीश पै हाथ फिरावै,
कबहू चूमती भाल।
देखो कान्हा द्वारे जाय कें,
राधा तुम्हें बुलावै।
अगर रूंठ कर लौट गई वो,
फेरि बगदि नहिं आवै।
भड़भड़ाइ उठि बैठे मोहन,
समझी मैया की चाल।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
6 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-07-2019) को "बड़े होने का बहाना हर किसी के पास है" (चर्चा अंक- 3398) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर कान्हा प्रसंग को शब्दों में उतारा है ...
बहुत सुन्दर भाव ...
वाह...बहुत सुंदर रचना आदरणीय👌
वाह ! कान्हा की नींद बड़ी गहरी है..
बहुत ही सुन्दर
सादर
बहुत सुंदर
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