अब तुम शीत कहाँ सेआये?
ढूँढत रहे ग्रीष्म भर तुमको,
हमको तुम नहीं पाये.........अब तुम..।
हम रहे ढूंढते वन उपवन में,
ताल तलैया और पोखरन में।
नदियाँ और तालाब खंगाले,
कीन्हीं खोज सघन कुंजन में।
पाने को गर्मी से राहत,
रहते थे बिजन डुलाये...........अब तुम..।
गर्मी तो हमें सताती ही थी,
तुम भी निष्ठुर बने रहे।
पाने को क्षणभर शीतलता,
हम रहते घन्टों पानी में खड़े रहे।
भीषण ताप से मुक्ति हेतु,
सौ सौ बार नहाये...........अब तुम ..।
तुम भी क्या करते बेचारे,
संकट में थे प्राण तुम्हारे।
कैद में थे धनिकों की तुम,
पाते थे शीतलता एसी कूलर बारे।
भये बरबंड छूट कैद से,
कहर रहे बरपाये......अब तुम...।
जाड़े में सर्दी करे जुलम,
कपड़ों की गठरी बन गये हम।
वस्त्रों से जितना ढाँपे तन,
उतना ही सर्दी करे सितम।
चाय गटकतेअलाव तापते,
हम जाड़े के दिन रहे बिताये...अब तुम..।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
चित्र गूगल से साभार
ढूँढत रहे ग्रीष्म भर तुमको,
हमको तुम नहीं पाये.........अब तुम..।
हम रहे ढूंढते वन उपवन में,
ताल तलैया और पोखरन में।
नदियाँ और तालाब खंगाले,
कीन्हीं खोज सघन कुंजन में।
पाने को गर्मी से राहत,
रहते थे बिजन डुलाये...........अब तुम..।
गर्मी तो हमें सताती ही थी,
तुम भी निष्ठुर बने रहे।
पाने को क्षणभर शीतलता,
हम रहते घन्टों पानी में खड़े रहे।
भीषण ताप से मुक्ति हेतु,
सौ सौ बार नहाये...........अब तुम ..।
तुम भी क्या करते बेचारे,
संकट में थे प्राण तुम्हारे।
कैद में थे धनिकों की तुम,
पाते थे शीतलता एसी कूलर बारे।
भये बरबंड छूट कैद से,
कहर रहे बरपाये......अब तुम...।
जाड़े में सर्दी करे जुलम,
कपड़ों की गठरी बन गये हम।
वस्त्रों से जितना ढाँपे तन,
उतना ही सर्दी करे सितम।
चाय गटकतेअलाव तापते,
हम जाड़े के दिन रहे बिताये...अब तुम..।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
चित्र गूगल से साभार
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