Tuesday, 7 April 2020

बजरंगी हनुमान

बजरंगी हनुमान,
अतुलित शक्ति अपरिमित ज्ञान।
तुमको जो ध्याता,
तुमसे लगन लगाता।
वह पाता है,
अनायास धन मान।
तुम्हारे संग का सत्व,
पाया राम ने रामत्व।
श्रीहीन किया दशकंधर,
न था जिसके वैभव का अनुमान।
लांघा समुद्र,
जैसे नाला हो छुद्र।
जला दी लंका,
तृणवत मान।
हे बजरंग अष्ट सिद्धि प्रदाता,
हे कपीश नव निधि के दाता। 
मुझको अपनी देउ भक्ति,
हे प्रभु कृपा निधान।
जयन्ती प्रसाद शर्मा



2 comments:

विश्वमोहन said...

बहुत सुंदर। बहुत बार तो आपकी रचना पर मेरी टिप्पणी अंकित ही नहीं होती है।

Jayanti Prasad Sharma said...

धन्यवाद महोदय।
गूगल प्लस बंद हो जाने के बाद से कमैंट्स पोस्ट पर दिखाई नही देते है। इसलिए उत्तर देरी से देने के लिए क्षमा चाहता हूँ।