Monday 15 June 2020

लगता है कहीं कुछ गिरा है

धम !
लगता है कहीं कुछ गिरा है
मैं उत्सुक हो बाहर झाँका
लोग देखने लगे मुझे हिकारत से
शायद मैं ही गिरा था उनकी नज़रों से।

क्यों?
जानने को बजह
किया सूक्ष्मतम आत्मनिरीक्षण
न मिलने पर कोई संधि
आश्वस्त हुआ।

लगता है-
भ्रम वश या द्वेष वश
किसी ने यों ही धकिया दिया होऊँगा
या कभी खा गया होऊँगा ठोकर-
बेखुदी में और गिर गया होऊँगा।

फिर भी,
मैं बेगुनाही का जश्न
नहीं मनाऊँगा
मैं होना चाहूँगा दंडित
किन्हीं के विचारों में गिर जाने के लिये।

जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू ।

14 comments:

Onkar said...

सुन्दर रचना

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 16 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



Jayanti Prasad Sharma said...

बहुत बहुत धन्यवाद आपका।

Jayanti Prasad Sharma said...

बहुत बहुत धन्यवाद।

Jayanti Prasad Sharma said...

जी,धन्यवाद महोदय।

hindiguru said...

सुन्दर प्रस्तुति

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

होना चाहूँगा दण्डित ,किसी की नजरों में गिर जाने के ....वाह

Jayanti Prasad Sharma said...

बहुत बहुत धन्यवाद महोदया।

Jayanti Prasad Sharma said...

बहुत बहुत धन्यवाद।

mestatusvideo said...


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mestatusvideo said...

सुंदर प्रेम कहानी

mestatusvideo said...

स्टील की औरत

FNB Basket said...

Good blog!!
mdh masala

Hardik Patel said...

Amzing stories your post thank you so much share this post raksha bandhan story in hindi