दोहे
राह सुगम सबकी करो,पथ को देउ बुहार।
कंकड़ पत्थर बीन कें, कंटक देउ निकार ।।
बिगड़ी ताहि बनाइये, यदि सम्भव है जाय ।
सुखी होयेगी आत्मा, जो इज्जत रह जाय ।।
पिय की छवि ऐसी बसी, और न भावै कोय ।
मन रोवै दै हूकरी, जिस दिन दरश न होय ।।
प्रेम का पथ है अनन्त, नहि इसका है अंत ।
प्रेम बिना है जिंदगी, सुख में लगा हलंत ।।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
राह सुगम सबकी करो,पथ को देउ बुहार।
कंकड़ पत्थर बीन कें, कंटक देउ निकार ।।
बिगड़ी ताहि बनाइये, यदि सम्भव है जाय ।
सुखी होयेगी आत्मा, जो इज्जत रह जाय ।।
पिय की छवि ऐसी बसी, और न भावै कोय ।
मन रोवै दै हूकरी, जिस दिन दरश न होय ।।
प्रेम का पथ है अनन्त, नहि इसका है अंत ।
प्रेम बिना है जिंदगी, सुख में लगा हलंत ।।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
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