सखी री मैं तो उनकी दिवानी,
नहीं आवै उन बिन चैन।
मन तड़पत घायल पंछी सौ,
विरह करै बेचैन.................सखी री...........।
बानि पड़ी ऐसी अंखियन को,
प्रतिक्षण देखन चाहत उनको।
नहीं दिखाई दें वे पलभर,
लगें बरसने नैन....सखी री...........।
यादें उनकी जब जब आवें,
उठे हूक सी मन घबरावै।
कहा करूँ कुछ समझ न पाऊँ,
बीते जागते रैन........................सखी री...........।
पड़े फफोले विरहानल के,
घाव टीसते हैं अब मन के।
पीर ह्रदय की सही न जावै,
लगी बहुत दुख देन.......सखी री...........।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
नहीं आवै उन बिन चैन।
मन तड़पत घायल पंछी सौ,
विरह करै बेचैन.................सखी री...........।
बानि पड़ी ऐसी अंखियन को,
प्रतिक्षण देखन चाहत उनको।
नहीं दिखाई दें वे पलभर,
लगें बरसने नैन....सखी री...........।
यादें उनकी जब जब आवें,
उठे हूक सी मन घबरावै।
कहा करूँ कुछ समझ न पाऊँ,
बीते जागते रैन........................सखी री...........।
पड़े फफोले विरहानल के,
घाव टीसते हैं अब मन के।
पीर ह्रदय की सही न जावै,
लगी बहुत दुख देन.......सखी री...........।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
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