दर्पण में देख कर अपना विवर्ण मुख-
काँप उठा वह।
उसके मन का चोर उसकी आँखों से झांक रहा था।
वह मिला न सका अपनी आँखें-
अपने प्रतिबिम्ब की आँखों से।
घबड़ाकर बन्द कर ली उसने अपनी आँखें।
उसे लगा दर्पण कह रहा था-
मैं तो स्वभाववश आपका प्रतिबिम्ब दिखाता हूँ,
कैसे हैं आप बिना किसी दुराग्रह के बताता हूँ।
अचानक मार दिया एक पत्थर उसने भयभीत होकर,
दर्पण बिखर गया अनेक टुकड़ो में तब्दील होकर।
अब उसे अपना चेहरा दर्पण के हर टुकड़े में दिखाई दे रहा था-
और दर्पण चीख चीख कर कह रहा था।
श्रीमान्, वास्तविकता से जी न चुराइये,
जैसा दिखना चाहते हैं उसी तरह बन संवर कर-
मेरे सामने आइये।
काँप उठा वह।
उसके मन का चोर उसकी आँखों से झांक रहा था।
वह मिला न सका अपनी आँखें-
अपने प्रतिबिम्ब की आँखों से।
घबड़ाकर बन्द कर ली उसने अपनी आँखें।
उसे लगा दर्पण कह रहा था-
मैं तो स्वभाववश आपका प्रतिबिम्ब दिखाता हूँ,
कैसे हैं आप बिना किसी दुराग्रह के बताता हूँ।
अचानक मार दिया एक पत्थर उसने भयभीत होकर,
दर्पण बिखर गया अनेक टुकड़ो में तब्दील होकर।
अब उसे अपना चेहरा दर्पण के हर टुकड़े में दिखाई दे रहा था-
और दर्पण चीख चीख कर कह रहा था।
श्रीमान्, वास्तविकता से जी न चुराइये,
जैसा दिखना चाहते हैं उसी तरह बन संवर कर-
मेरे सामने आइये।
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