मन भावन बसंत आयौ।
जड़ जड़ात मन है गयौ चेतन-
हहर-हहर हहरायौ......................... मन भावन बसंत........।
दूर भई जाड़े की ठिठुरन,
लागे करन नृत्य मयूर बन।
हुई पल्लवित डाली डाली,
खिल गये फूल महक गये उपवन।
पंच शर वार कियौ रति पति ने,
उमंगि-उमंगि मन आयौ.................मन भावन बसंत..........।
चलत मंद-मंद पुरवाई,
मद मस्त नारि लेत अंगडाई।
कर श्रृंगार वसन पीतधार,
मिलन करन-प्रीतम सौ आई।
घुसौ अनंग अंग भामिन के,
नस-नस में सरसायौ.....................मन भावन बसंत............।
खेत खलिहान सब हरित भये,
लखि पीली सरसों मन मुदित भये।
देखि प्रकृति की छटा निराली,
थल, नभ, जलचर सब सुखित भये।
धानी आंचल धरती ने,
लहर-लहर लहरायौ........................मन भावन बसंत.............।
उड़ि रहौ मकरंद भई सुरभित बयार,
रस लोभी भंवरा मडरावै डार-डार।
फड़-फड़ा पंख उड़ चले पखेरू,
मन होवै हर्षित अम्बर की सुन्दरता निहार।
सुन-पक्षिन कौ कलरव,
मन सरर-सररायौ..........................मन भावन बसंत.............।
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