Friday 23 May 2014

चेन स्नेचर

उसने गली के मोड़ से देखा,
उसके घर के बाहर लगी हुई थे लोगों की भीड़।
कुछ लोग अन्दर जा रहे थे,
कुछ बाहर आ रहे थे।
वह आशंकित होकर बढ़ चला तेजी से–
और हो गया घर में प्रविष्ट।
सहन में खड़ी उसकी माँ के इर्द गिर्द खड़े थे लोग–
और देख रहे थे उसकी छिली गर्दन।
वे कर रहे थे तरह तरह की बातें।
कुछ कोस रहे थे उस चेन स्नेचर को–
जो झपट्टा मार कर ले उड़ा था उनके गले से सोने की चेन।
कुछ दे रहे थे परामर्श पुलिस में लिखाने को वारदात की रिपोर्ट–
और कुछ कर रहे थे आकलन नुकसान का।
वह सब कुछ सुनता हुआ टटोल रहा था–
अपनी पेंट की जेब में पड़ी सोने की चेन,
कभी देखने लगता था- 
माँ के गले में पड़े निशान को।
उसने जेब से निकाल कर– 
लेली चेन अपने हाथ में।
कहते हुए,’ओह माँ वह तुम थीं,’ रख दी चेन–
माँ की हथेली पर।
वह आश्चर्य से देखने लगीं हथेली पर रखी अपनी चेन–
और सामने खड़े अपने बाइकर सुपुत्र को।
पुत्र का यह रूप देख कर वह रह गईं थीं हत्प्रभ–
और शर्म से झुक गई थी उनकी छिली गर्दन।

जयन्ती प्रसाद शर्मा 

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