Saturday 29 April 2017

वे भ्रष्टाचारी हैं

वे भ्रष्टाचारी हैं भ्रष्टों से अनुबंधित हैं, 
भ्रष्टाचार के जितने भी प्रकार हैं सबसे संबंधित हैं। 
वे राजनीति में थे शक्तिपुंज,
बदले हालातों में हो गये हैं लुंज-पुंज। 
लोकतंत्र के मेले में जनादेश खंडित है। 
भलों से रखते थे दुराव, 
बुरों का करते थे बचाव। 
वे कर पायेंगे अपनी रक्षा आशंकित हैं। 
राजाज्ञाओं की बनाते रहे रद्दियाँ, 
कानून की उड़ाते रहे धज्जियाँ।  
वे अपनी आत्म प्रताड़ना से दंडित हैं।

जयन्ती प्रसाद शर्मा    

Friday 14 April 2017

मारी नैन कटारी

मारी नैन कटारी सैंया ने मारी।
          नैन कटारी सैंया ने मारी,
          सीधे दिल में मेरे उतारी।
          ऐसी घात करी जुल्मी ने,
          सह नहीं पाई मैं बेचारी।
मैं मर गई दरद की मारी......सैंया ने..............।
          सैंया ने मोहे दुख दीनों,
          नैनों से घायल कर दीनों।
          लाज शरम सब भूलि गई मैं,
          मोहि बावरी उसने कीनों।
कर दई मेरी ख्वारी......सैंया ने..............।
          घायल हिरनी सी इत उन डोलूँ,
          कहूँ कौन से का से बोलूँ।
          पीर भई रही तड़फड़ात मैं,
          मोहि दिन में चैन न नींद रात में।
कहती हूँ कसम खा कर तुम्हारी......सैंया ने..............।
          प्रीत की रीत न उसने जानी,
          चले गये दिल लेकर दिल जानी।
          रहत बेकली मेरे मन में,
          हर दम अंखियन से बरसत पानी।
अँसुवन से चूनर भीगी रहत मारी......सैंया ने..............।

जयन्ती प्रसाद शर्मा


Saturday 1 April 2017

वक्त का मरहम

है जन्म अनिश्चित मृत्यु शाश्वत सत्य है ,
नहीं कुछ भी स्थिर सब अनित्य है।
जैसा जिसका भोग है रहता है वह साथ।
जाने की बेला में चल देता है पैदा कर निर्वात।
नहीं आत्मा का कोई होता रिश्ता नहीं कोई नाता,
इस संसार के रंगमंच पर शरीर ही हर किरदार निभाता।
सब हैं सब कुछ जानते नहीं कोई अनभिज्ञ,
पड़ ममता के फेर में कष्ट उठाते अज्ञानी और विज्ञ।
इसने, उसने, मैंने, तुमने गम अपनों के जाने का उठाया,
किसी ने पत्नी किसी ने भाई किसी ने पुत्र गँवाया।
कितना भी कोई शोक संतप्त हो नहीं साथ मृतक के जाता,
ऐसे ही चलता रहता है संसार सब्र मन में आ जाता।
लोगों की सान्त्वना वक्त का मरहम हर पीड़ा हर लेता है,
कितने भी गहरे हों घाव, हर व्रण को भर देता है।  

जयन्ती प्रसाद शर्मा