Tuesday, 9 September 2014

उनसे मेरी बंदगी है

उनसे मेरी बंदगी है, दुआ है, सलाम भी है,
नमस्ते है, जुहार है, राम राम भी है।
न कोई लेने जाता है,
न कोई देने आता है।
हमारे बीच बस-
इंसानियत का नाता है।
वे नहीं मेरे कोई मै नहीं उनका कोई,
पर उनकी हर खैर ओ खबर-
मेरी ख़ुशी को पयाम भी है.......... उनसे मेरी................. ।
हर किसी की जिन्दगी खुशहाल हो,
न किसी को कोई रंज-ओ-मलाल हो।
हो पुर सुकून अवाम सब-
और गमों से नहीं कोई बेहाल हो।
मैं नहीं जानता साधना, आराधना,
पर कामना हर किसी के उत्कर्ष की-
मेरी राह भी है मुकाम भी है.......... उनसे मेरी................. ।
न कोई अपना है न पराया है,
हर किसी में रब समाया है।
कर सके तो कर खिदमत हर इन्सान की-
क्यों कि आनी जानी यह माया है।
माया पर न इठला, पाकर न इसे इतरा,
यह आते हुये देती है सुख, जाते हुये देती है दुख-
और कर देती गुमनाम भी है.......... उनसे मेरी................. । 


जयन्ती प्रसाद शर्मा