बहुत सो लिये और न अब,
जिम्मेदारी से मुँह मोड़ो।
करदो भ्रष्टों को आगाह,
और उनकी बाँह मरोड़ो।
नोंच नोंच कर सम्पदा देश की,
अपने भंडार भरे हैं।
दिखला कर जनता को सब्जबाग,
पूरे अपने स्वार्थ करे हैं।
कर दिये गहरे घाव मनों में,
अब और कचोटना छोड़ो।....................... बहुत सो लिये......।
देश पर हैं अनेक अपकार तुम्हारे,
जाति धर्म का दुष्प्रचार कर मतभेद उभारे।
आग लगा कर क्षेत्रवाद की,
बहुतों के घर-वार उजाड़े।
अब नहीं कोई चाल चलेगी,
ओ गद्दारो, चोरो।....................... बहुत सो लिये................ ।
देश की सेवा करने को नेतृत्व थमाया था,
लूट खसोट करने को नहीं मान्यनीय बनाया था।
अब सब बापस करना होगा,
भ्रष्टाचार से जो धन माल कमाया था।
भूखी रही देश की जनता,
तुमने भरे करोड़ो।....................... बहुत सो लिये................ ।
लाकर युवकों को राजनीति में, अपने रंग जमाये,
देकर उनको संरक्षण बाहुवली, दबंग बनाये।
करके उनको गुमराह कई बार,
साम्प्रदायिक दंगे करवाये।
नहीं शरमाते नफरत फैलाते,
काले मन के देसी गोरो।....................... बहुत सो लिये.........।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
जिम्मेदारी से मुँह मोड़ो।
करदो भ्रष्टों को आगाह,
और उनकी बाँह मरोड़ो।
नोंच नोंच कर सम्पदा देश की,
अपने भंडार भरे हैं।
दिखला कर जनता को सब्जबाग,
पूरे अपने स्वार्थ करे हैं।
कर दिये गहरे घाव मनों में,
अब और कचोटना छोड़ो।....................... बहुत सो लिये......।
देश पर हैं अनेक अपकार तुम्हारे,
जाति धर्म का दुष्प्रचार कर मतभेद उभारे।
आग लगा कर क्षेत्रवाद की,
बहुतों के घर-वार उजाड़े।
अब नहीं कोई चाल चलेगी,
ओ गद्दारो, चोरो।....................... बहुत सो लिये................ ।
देश की सेवा करने को नेतृत्व थमाया था,
लूट खसोट करने को नहीं मान्यनीय बनाया था।
अब सब बापस करना होगा,
भ्रष्टाचार से जो धन माल कमाया था।
भूखी रही देश की जनता,
तुमने भरे करोड़ो।....................... बहुत सो लिये................ ।
लाकर युवकों को राजनीति में, अपने रंग जमाये,
देकर उनको संरक्षण बाहुवली, दबंग बनाये।
करके उनको गुमराह कई बार,
साम्प्रदायिक दंगे करवाये।
नहीं शरमाते नफरत फैलाते,
काले मन के देसी गोरो।....................... बहुत सो लिये.........।
जयन्ती प्रसाद शर्मा