आओ दुख मेरे जीवन में आओ,
तुम व्यापो मुझको नहीं दया दिखलाओ।
बड़े सुहाने होते हैं सुख के क्षण,
तपिश दूर करते हैं तत्क्षण।
हर लेते हैं तन मन की पीड़ा-
शुष्क हो जाते हैं मन के ब्रण।
पर पल भर को देते हैं साथ, तुम चिर साथी बन जाओ.......आओ............।
मैं अपने सुख के लमहों में भूल गया औरों का गम,
देख अश्रु किन्हीं आँखों में नहीं हुई ये आँखें नम।
नहीं फूटे सांत्वना के सुर मुख से-
संवेदना हो गई है कम।
तुम टीसो मेरे घाव नहीं सहलाओ.......आओ...........।
नहीं बुहारो पथ ऐसे ही जाने दो,
नहीं बिछाओ फूल पांव में कांटे चुभ जाने दो।
जो नहीं कर सके कोई घर रोशन-
ऐसे दीपों को बुझ जाने दो।
दुखिओं के संग रो लेने दो नहीं चुपाओ.......आओ............ ।
सुख में जो घेरे रहते हैं भाग वे दुख में जाते हैं
सच्चे शुभचिंतक ही दुःख में साथ निभाते हैं।
दुख के बाद ही आते हैं सुख के पल-
लोग पता नहीं दुख से क्यों घबराते हैं।
दुखों का स्वागत करो, नहीं डराओ.......आओ........... ।
जयन्ती प्रसाद शर्मा .
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