मेरी बारी कब आयेगी?
लोग आते हैं करते है सिद्ध औचित्य अपनी त्वरितता का-
और मै उन्हें अपने से आगे जाने का रास्ता दे देता हूँ।
कुछ लोग कातर दृष्टि से देखते हुये, बने हुये दीनता की प्रतिमूर्ति,
कर जाते है मुझे बाईपास-
और मै खड़ा हुआ देखता रह जाता हूँ।
कोई अपनी धूर्तता और लेकर दबंगई का सहारा,
मुझे धकियाता हुआ, मुस्कराकर आगे बढ़ जाता है।
मै लटकाये हुये गले मे सिद्धांन्तों का ढोल,
आज भी खड़ा हुआ हूँ वहीँ जहाँ था वर्षों पहले,
सोचता हुआ, मेरी बारी कब आयेगी ?
जयन्ती प्रसाद शर्मा
लोग आते हैं करते है सिद्ध औचित्य अपनी त्वरितता का-
और मै उन्हें अपने से आगे जाने का रास्ता दे देता हूँ।
कुछ लोग कातर दृष्टि से देखते हुये, बने हुये दीनता की प्रतिमूर्ति,
कर जाते है मुझे बाईपास-
और मै खड़ा हुआ देखता रह जाता हूँ।
कोई अपनी धूर्तता और लेकर दबंगई का सहारा,
मुझे धकियाता हुआ, मुस्कराकर आगे बढ़ जाता है।
मै लटकाये हुये गले मे सिद्धांन्तों का ढोल,
आज भी खड़ा हुआ हूँ वहीँ जहाँ था वर्षों पहले,
सोचता हुआ, मेरी बारी कब आयेगी ?
जयन्ती प्रसाद शर्मा
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