मेरे विचार आवारा बादल से आते जाते रहते हैं,
कभी घने हो जाते हैं कभी छितरा जाते हैं।
कभी बहुत ऊँचा उठ जाते,
लोग समझ नहीं मुझको पाते।
गूढ़ विचारक नहीं कोई मुझसा,
अक्सर भ्रम में वे पड़ जाते।
मेरे इस अदने से कद को बहुत बढ़ा जाते हैं.............मेरे विचार.....।
शुभ्र बदली से दिखते कभी,
शुभ विचार कहते सभी।
कभी दिखते काले बादल से,
निकले हो दल दल से जैसे अभी।
मेरे विचारों से ही लोग मुझे ऊँचा-नीचा कह जाते हैं..मेरे विचार.....।
कभी पलायनवादी हो जाते,
हिंसक लोगों से मुझे जुड़ाते।
बातें समानता की करने से,
साम्यवादी मुझे बनाते।
नहीं समझ मुझे किसी वाद की पर वादों में उलझाते हैं...मेरे विचार..।
स्थिर नहीं रहते मेरे विचार,
राजनीति, कभी धर्मनीति का करते प्रचार।
कभी लोभ में पड़कर अनीति के,
बन जाते है पक्षकार।
अवसर की रहने से तलाश में, अवसरवादी मुझे बनाते हैं..मेरे विचार..।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
कभी घने हो जाते हैं कभी छितरा जाते हैं।
कभी बहुत ऊँचा उठ जाते,
लोग समझ नहीं मुझको पाते।
गूढ़ विचारक नहीं कोई मुझसा,
अक्सर भ्रम में वे पड़ जाते।
मेरे इस अदने से कद को बहुत बढ़ा जाते हैं.............मेरे विचार.....।
शुभ्र बदली से दिखते कभी,
शुभ विचार कहते सभी।
कभी दिखते काले बादल से,
निकले हो दल दल से जैसे अभी।
मेरे विचारों से ही लोग मुझे ऊँचा-नीचा कह जाते हैं..मेरे विचार.....।
कभी पलायनवादी हो जाते,
हिंसक लोगों से मुझे जुड़ाते।
बातें समानता की करने से,
साम्यवादी मुझे बनाते।
नहीं समझ मुझे किसी वाद की पर वादों में उलझाते हैं...मेरे विचार..।
स्थिर नहीं रहते मेरे विचार,
राजनीति, कभी धर्मनीति का करते प्रचार।
कभी लोभ में पड़कर अनीति के,
बन जाते है पक्षकार।
अवसर की रहने से तलाश में, अवसरवादी मुझे बनाते हैं..मेरे विचार..।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
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