Wednesday 12 November 2014

उनका आना

उनका आना मुझे आल्हादित कर देता है।
मेरे मन उपवन में खिलने लगते हैं फूल-
जिनकी सुगन्ध से मेरा तनमन महकने लगता है।
मन में ठाठे मारने लगता है भावनाओं का ज्वार ,
उसकी उतुंग लहरें मेरे सम्पूर्ण व्यक्तित्व को सराबोर कर देती है।
बातावरण में बहने लगती है बसंती बयार-
और मैं मस्ती में डूब जाता हूँ।
कानों में पक्षियों का मधुर कलरव घोल देता है मिठास,
आँखों में तैरने लगते हैं सुहाने स्वप्न-
और मैं उनकी तावीर में खो जाता हूँ।
अपनी बेखुदी में मुझ पर मौसम की किसी भी बेरुखी-
धूप, ताप, सर्दी, गर्मी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
आज उनकी वापसी की खबर ने,
हिला दिया है मेरा सम्पूर्ण व्यक्तित्व।
मन उपवन में हो गया है पतझड़, कुम्हला गये है फूल,
थम गया है भावनाओं का ज्वार।
मै ख्वाबों की तावीर से निकलकर, स्वेदकण पोंछता हुआ-
दुखी मन खड़ा हुआ हूँ यथार्थ की धरा पर।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

No comments: