Friday 21 September 2018

इंसानियत

मैं गलियों में गलियारों में इंसानियत ढूंढता रहा,
मंदिरों में मस्जिदों में उसका पता पूँछता  रहा।
वह मिली तो मिली सर्वहारों के बीच,
जिनका जीवन अभावों से जूझता रहा।
वे अपनी पीड़ा से दुखी रहते हैं,
अंग अंग उनके टीसते रहते हैं।
पूँछते हैं एक दूसरे की कुशल क्षेम,
नहीं चुराते जी दुख में संग रहते हैं।
वे लड़ते हैं झगड़ते हैं रूठते हैं,
इंसानियत के रिश्ते नहीं टूटते हैं।
आपदा में मिल जाते हैं हाथ,
मिले हाथ नहीं छूटते हैं।
सुविधाओं अय्याशियों में पले लोग,
कत्ल इन्सानियत का करते हैं।
करते हैं वरिष्ठों से मार पीट,
दुष्कर्म नारियों संग करते हैं।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

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