Thursday, 8 September 2016

तुम्हें देखना है

सुकवि कोई पहचाना नहीं जाये-
कोई बात नहीं,
चारण का अभिनन्दन हो नहीं जाये-
तुम्हें देखना है।

साधु कोई पूजा नहीं जाये-
कोई बात नहीं,
असाधु का वंदन हो न जाये-
तुम्हें देखना है।

संतों का समागम हो नहीं पाये-
कोई बात नहीं,
दुष्टों का गठबंधन हो नहीं जाये-  
तुम्हें देखना है।

देश भक्त सराहा नहीं जाये- 
कोई बात नहीं,
देशद्रोह को चन्दन लग नहीं जाये-
तुम्हें देखना है।

जयन्ती प्रसाद शर्मा    

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