Monday, 17 February 2020

बसंत

ठिठुरे थे वो तन गये हुआ शीत का अंत,
सोये से तरुवर जगे आया जान बसंत।
आया जान बसंत हुई रितु अति सुहावनी,
भ्रमर करें गुंजार कलियाँ हुईं लुभावनी।
मोहित करते क्यार विटप लगते निखरे से,
तने हुये वे आज शीत से जो ठिठुरे थे।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

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