Saturday 2 May 2020

तुम थे जीवन में रंग था

तुम थे जीवन में रंग था
उमंग थी उचंग थी
तुम ले गये सब अपने साथ
बस छोड़ गये हो विरासत में शून्य।

इसी शून्य के सहारे
मुझे ज़िन्दगी का बोझ ढोना है
जीवन भर रोना है
भव से पार होना है।

अधिक क्लांत होने पर
चित्त अशांत होने पर
तुम्हारी यादों की पूँजी से
कुछ ख़र्च लूँगी।

मैं बरतूँगी मितव्यता
यह चुक न जाये अन्यथा
और मैं हो जाऊँ
निपट कंगाल।

निवेदन है तुम यादों में आते रहना
मेरा यह अदृश्य धन बढ़ाते रहना
ऐसा न हो तुम मुझे भूल जाओ
मैं भी तुम्हें भूल जाऊं किसी स्वप्न की तरह।

जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू ।

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

यादे ही तो अनमोल होती हैं जीनैे के लिए।

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा said...

बहुत ही सुंदर इस प्रस्तुति हेतु बधाई आदरणीय ।

Jayanti Prasad Sharma said...

धन्यवाद पुरूषोत्तम जी।

Jayanti Prasad Sharma said...

धन्यवाद महोदय।