Sunday 24 March 2019

मैं शराब हूँ

मैं शराब हूँ,
लोग कहते हैं मैं खराब हूँ।
खराबी मुझमें नहीं,
पीने वालों की सोच में है।
छक कर पीना,
खोना होश में है।
मैं अंगूरी आसव,
घूँट दो घूँट पीने वालों को देती मज़ा।
बे हिसाब पीने वालों को,
देती सजा।
मैं उसके मन बुद्धि  पर,
कर लेती अधिकार।
पटक कर उसे किसी नाले में,
करती प्रतिकार।
मैं अपने वशी भूत पर,
बुढ़ापा आने नहीं देती।
उससे पहले ही उसे,
मौत के आगोश में दे देती।
मेरा यह कबूलनामा,
स्वीकार लीजिये।
तौबा छक कर पीने से,
यार कीजिये।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Tuesday 19 March 2019

होली खेलि रहे नन्दलाल

होली खेलि रहे नन्दलाल,
बिरज की खोरी में।
होरी खेलन बरसाने आये, 
ग्वाल बाल कान्हा लैकें आये।
भर लाये लाल गुलाल,
पीत पट झोरी में ।                     
चंद्र सखी राधा की आयी,
भरि कें गगरी जल लै आयी।
जानें घोरि लियौ रँग लाल-
कमोरी कोरी में।                        
ग्वालन घेरी वृषभानु किशोरी,
चंद्राबल की गगरी फोरी।
राधे मुख मलौ गुलाल-
श्याम नें होरी में।                       
करौ न श्याम मोसौं बरजोरी,
हा हा खाऊँ मैं करूँ चिरौरी।
मेरौ टूटो नौलख हार-
जोरा जोरी में।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
चित्र गूगल से साभार

Sunday 10 March 2019

मैं हूँ आज ग़म ज़दा

मैं हूँ आज ग़म ज़दा,
आक्रोशित होता हूँ यदा कदा।
दुश्मनों ने गहरी घात की है,
आँसुओंकी मुल्क को सौगात दी है।
बैरियों का नाश हो,
दुखी दिल से निकलती है सदा।
होता युद्ध तो करते कुछ बारे न्यारे,
छिपी घात से बिना दिखाये शौर्य-
मारे गये बेचारे।
उनकी शहादतों के गीत गाये जायेंगे सर्वदा।
शहीदों की कुर्बानियां व्यर्थ नहीं जायेंगीं,
दुश्मनों की खुशियाँ उनके रक्त संग बह जायेंगीं।
वे सो न सकेंगे चैन से,
डरता रहेगा मन सदा।
हर कोई यहाँ आक्रोशित है,
बदला लेने को संकल्पित है।
इस जनाक्रोश का क्या होगा अंजाम,
अभी तो हुई भी नहीं है इब्तदा।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Sunday 3 March 2019

अंग भभूत मली

श्री शिव शंकर संसार सार,
करते थे अपना श्रृंगार।
सँभाल कर जटाओं में गंग,
धारण कर नाग-चन्द्र।
मलने लगे भभूत,
महादेव अवधूत। 
कुछ भभूत उड़ी,
नाग की आँख में पड़ी।
नाग फुंफकार उठा,
फुसकार से चंद्र से टपकी सुधा। 
अमृत की वह बूंद ब्याध्र चर्म परचढ़ी,
जी उठा ब्याध्र जान उसमें पड़ी।
जी कर उसने लगा दी दहाड़,
सिंहनाद से गूंजा पहाड़।
मची हलचल जैसे लग गई आग, 
डरकर नन्दी गया भाग।
महादेव भोलेशंकर, 
हुए दिगम्बर।
स्वयं को इधर उधर छिपाने लगे,
जगदम्बा को देख कर लजाने लगे।
भोलेनाथ की देख कर दशा,
शैल सुता भी गईं लजा।
देख कर दिगम्बर नाथ को शरमाने लगीं,
मुँह फेर कर जगदम्बे मुस्काने लगीं।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
चित्र गूगल से साभार