Sunday 10 March 2019

मैं हूँ आज ग़म ज़दा

मैं हूँ आज ग़म ज़दा,
आक्रोशित होता हूँ यदा कदा।
दुश्मनों ने गहरी घात की है,
आँसुओंकी मुल्क को सौगात दी है।
बैरियों का नाश हो,
दुखी दिल से निकलती है सदा।
होता युद्ध तो करते कुछ बारे न्यारे,
छिपी घात से बिना दिखाये शौर्य-
मारे गये बेचारे।
उनकी शहादतों के गीत गाये जायेंगे सर्वदा।
शहीदों की कुर्बानियां व्यर्थ नहीं जायेंगीं,
दुश्मनों की खुशियाँ उनके रक्त संग बह जायेंगीं।
वे सो न सकेंगे चैन से,
डरता रहेगा मन सदा।
हर कोई यहाँ आक्रोशित है,
बदला लेने को संकल्पित है।
इस जनाक्रोश का क्या होगा अंजाम,
अभी तो हुई भी नहीं है इब्तदा।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

9 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर

दिगम्बर नासवा said...

ये इब्तदा भी होगी और बदला भी ...
आक्रोश की सहारा है आपकी रचना ... सभी के ल्दिल की आवाज़ ....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-03-2019) को "आँसुओं की मुल्क को सौगात दी है" (चर्चा अंक-3272) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Pammi singh'tripti' said...

आपकी लिखी रचना आज ," पाँच लिंकों का आनंद में " बुधवार 13 मार्च 2019 को साझा की गई है..
http://halchalwith5links.blogspot.in/
पर आप भी आइएगा..धन्यवाद।

अनीता सैनी said...

बहुत सुन्दर
सादर

मन की वीणा said...

हृदय तल से निकला आक्रोश ।
अप्रतिम भाव रचना।

Vocal Baba said...

दुश्मनों ने गहरी घात की है। आंसुओं की मुल्क़ को सौगात दी है। क्या बात है। बहुत सही लिखा है। हर भारतीय आक्रोशित है। बदला लेना चाहता है। बहुत बढि़या। सादर।

Kamini Sinha said...

बहुत खूब.... सादर नमन ,जय हिन्द

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर