मैंने पूंछा कब आओगे,
मेरे मन के सूखे उपवन में,
प्रेम सुधा कब बरसाओगे .................... मैंने पूंछा कब आओगे....।
अतृप्त है मन संतप्त है तन,
तेरी बेरुखी से, अभिशप्त बना मेरा जीवन।
मिट गई जीने की चाह,
मर गया उत्साह।
आशा दीप जलाने को-
बोलो, बोलो तुम कब आओगे .................... मैंने
पूंछा कब आओगे....।
मुझको चाहत थी भोग की मुझे जोग दे दिया,
जोग दे दिया, वियोग दे दिया।
मन है बहुत उदास,
नहीं जीने की कोई आस।
विरहानल से पड़े फफोले-
बोलो मरहम कब लाओगे.................... मैंने पूंछा कब आओगे....।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
No comments:
Post a Comment